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________________ अंतगडदसाओ अन्तकृद्दशासूत्र का द्वादशांगी में आठवाँ स्थान है। एक श्रुतस्कन्ध वाला यह आगम आठ वर्गों में विभक्त है। प्रथम पाँच वर्गों के कथानकों का सम्बन्ध अरिष्टनेमि के साथ और शेष तीन वर्गों के कथानकों का सम्बन्ध भगवान् महावीर और श्रेणिक राजा के साथ है। इसमें 90 उन महान् आत्माओं का वर्णन है, जिन्होंने घोर तप एवं आत्म-साधना द्वारा कर्मों का अन्त करके केवलज्ञान प्राप्त किया, इसलिए वे अन्तकृत कहलाए। उन महान आत्माओं के नगर, उद्यान, चैत्य, धन-वैभव, माता-पिता, परिजनों, दीक्षाग्रहण, श्रुत-ज्ञान की साधना, घोर तप व मुक्ति प्राप्ति का इसमें वर्णन है। यह सम्पूर्ण आगम भौतिकता पर आध्यात्मिक विजय का संदेश प्रदान करता है। सर्वत्र तप की उत्कृष्ट साधना दिखलाई देती है। इसमें भगवान् महावीर ने उपवास व ध्यान दोनों को ही क्रमशः बाह्य व आन्तरिक तप के रूप में स्वीकार किया है। इस श्रुतांग में कोई भी कथानक पूर्ण रूप से वर्णित नहीं है। 'वण्णवो' व 'जाव' शब्दों द्वारा अधिकांश वर्णन व्याख्याप्रज्ञप्ति अथवा ज्ञाताधर्मकथा से पूरा करने की सूचना मात्र है। इस आगम के तृतीय वर्ग के आठवें अध्ययन में देवकी पुत्र गजसुकुमाल एवं छठे वर्ग के तीसरे अध्ययन में अर्जुन मालाकार के महत्त्वपूर्ण कथानक आए हैं। प्रस्तुत आगम में श्रीकृष्ण के बहुमुखी व्यक्तित्व का भी विस्तार से निरूपण हुआ है। अनुत्तरोववाइयदसाओ अनुत्तरौपपातिकदशा का द्वादशांगी में नवाँ स्थान है। इस आगम ग्रन्थ में महावीरकालीन उन उग्र तपस्वियों का वर्णन हआ है, जिन्होंने अपनी धर्म-साधना द्वारा मरण कर अनुत्तर स्वर्ग विमानों में जन्म लिया, जहाँ से केवल एक बार ही मनुष्य योनि में आने से मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। वर्तमान में यह ग्रन्थ तीन वर्ग व तैंतीस अध्ययनों में विभक्त है। इसमें 33 महान् आत्माओं का संक्षेप में वर्णन है। इनमें से 23 राजकुमार तो सम्राट श्रेणिक के पुत्र हैं तथा शेष 10 भद्रा सार्थवाही के पुत्र हैं। इन दोनों के एक-एक पुत्र के जीवनवृत्त का वर्णन विस्तार से करते हुए शेष पुत्रों के चरित्रों को उनके समान कहकर सूचित कर दिया गया है। इस प्रकार
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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