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________________ समवायो समवायांग का द्वादशांगी में चतुर्थ स्थान है। समवायांग वृत्ति में लिखा है कि इसमें जीव-अजीव आदि पदार्थों का समवतार है, अतः इस आगम का नाम समवायो है। स्थानांग के समान समवायांग भी संख्या शैली में रचा गया है, किन्तु इसमें एक से प्रारंभ होकर कोटानुकोटि की संख्या तक के तथ्यों का समवाय के रूप में संकलन है। नंदीसूत्र में समवाय की विषय सूची इस प्रकार दी गई है - (1) जीव, अजीव, लोक, अलोक, स्व-समय और पर-समय का समवतार, (2) एक से सौ संख्या तक का विकास, (3) द्वादशांगी गणिपिटक का वर्णन । इस ग्रन्थ में क्रम से पृथ्वी, आकाश, पाताल, तीनों लोकों के जीव आदि समस्त तत्त्वों का द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से एक से लेकर कोटानुकोटि संख्या तक परिचय दिया गया है। आध्यात्मिक तत्त्वों, तीर्थकरों, गणधरों, चक्रवर्तियों, बलदेवों और वासुदेवों से संबन्धित वर्णनों के साथ भूगोल, खगोल आदि की सामग्री का संकलन भी किया गया है। 72 कलाओं, 18 लिपियों आदि का भी इसमें उल्लेख है। वस्तुतः जैन सिद्धान्त, वस्तु-विज्ञान, व जैन इतिहास की दृष्टि से यह आगम अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वियाहपण्णत्ती द्वादशांगी में व्याख्याप्रज्ञप्ति का पाँचवां स्थान है। प्रश्नोत्तर शैली में लिखे गये इस आगम ग्रन्थ में गौतम गणधर, अन्य शिष्य वर्ग एवं श्रावक-श्राविका आदि द्वारा जिज्ञासु भाव से पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भगवान् महावीर ने अपने श्रीमुख से दिये हैं। इसी कारण सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान से भरे हुए इस ग्रन्थ को विद्वानों द्वारा शास्त्रराज कहकर सम्बोधित किया गया है। नन्दी व समवायांग के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति में 36000 प्रश्नों का व्याकरण है, किन्तु वर्तमान समय में इसमें 41 शतक ही हैं, जो 1925 उद्देशकों में विभक्त हैं। प्रश्नों के विवेचन क्रम में तत्त्वज्ञान, ज्ञान-मीमांसा, आचार, अन्य दार्शनिक मत, विभिन्न ऐतिहासिक व्यक्ति एवं घटनाओं का विस्तार से विवेचन है। इस अपेक्षा से यह ग्रन्थ प्राचीन जैन ज्ञान का विश्वकोश भी कहा जाता है। अन्य आगमों की अपेक्षा इसकी विषय-वस्तु बहुत अधिक विशाल है। ज्ञान की कोई ऐसी धारा नहीं,
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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