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________________ साधु के लक्षण, माहण, श्रमण, भिक्षु और निग्रंथ शब्दों की व्युत्पत्ति भली प्रकार से व्याख्या कर उदाहरणों एवं रूपकों द्वारा समझाई गई है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में 7 अध्ययन हैं, जिनमें परमतों के खण्डन के साथ-साथ श्रमणों के आचार का प्रतिपादन हुआ है। जीव व शरीर के एकत्व, ईश्वर कर्तृत्व, नियतिवाद, आहार दोष, भिक्षादोष आदि पर विशेष प्रकाश डाला गया है। अन्तिम अध्ययन ‘नालन्दीय' में नालन्दा में हुए गौतम गणधर और पार्श्वनाथ के शिष्य पेढालपुत्र का मधुर संभाषण वर्णित है। इसमें पेढालपुत्र गौतम गणधर से प्रतिबोध पाकर चातुर्याम धर्म को छोड़कर भगवान् महावीर के पास पंच महाव्रत रूप धर्म को अंगीकार करता है। उस युग की जो दार्शनिक दृष्टियाँ थीं, उनकी जानकारी तो इस आगम से मिलती ही है साथ ही ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह हमारी अनुपम धरोहर है। ठाणं द्वादशांगी में स्थानांग का तीसरा स्थान है। प्रस्तुत ग्रन्थ में 10 अध्ययन हैं । इस आगम में विषय को प्रधानता न देकर संख्या को प्रधानता दी गई है। प्रत्येक अध्ययन में अध्ययन की संख्यानुक्रम के आधार पर जैन सिद्धान्तानुसार वस्तु-संख्याएँ गिनाते हुए उनका वर्णन किया गया है। जैसे प्रथम अध्ययन में एक आत्मा, एक चरित्र, एक समय, एक दर्शन आदि। दूसरे अध्ययन में दो क्रियाएँ -जीव क्रिया व अजीव क्रिया, आत्मा के दो भेद – सिद्ध व संसारी आदि का निरूपण किया गया है। इस प्रकार 10वें अध्ययन तक यह वस्तु वर्णन 10 की संख्या तक पहुँच गया। स्थानांगसूत्र के अध्ययन स्थान के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन स्थानों में तत्त्वज्ञान, आचार-विवेचन, ज्ञान-मीमांसा, स्वसमय और परसमय, श्रद्धा, भक्ति, धर्म, दर्शन, आत्मा, जीव, जगत, परमात्मा, विविध महापुरुषों के नाम, तीर्थकर, कुलकर, गणधर ,चक्रवर्ती आदि के उल्लेख, परिग्रह, अपरिग्रह, हिंसा, अहिंसा सब कुछ समाहित है। पदार्थ विवेचन द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव दृष्टि से किया गया है। वस्तुतः यह ग्रन्थ कोश शैली में है, अतः स्मरण रखने की दृष्टि से बहुत उपयोगी है।
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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