________________
3. गणितानुयोग - सूर्यप्रज्ञप्ति आदि
4. द्रव्यानुयोग - दृष्टिवाद आदि (घ) जैन आगमों का सबसे उत्तरवर्ती वर्गीकरण अंग, उपांग, मूलसूत्र व
छेदसूत्र के रूप में प्रभावक चरित में मिलता है। यह वि. संवत् 1334 (ई.सन् 1277) की रचना है। इसी वर्गीकरण के आधार पर
आगम साहित्य का मूल्यांकन विद्वानों ने किया है। विभिन्न जैन-सम्प्रदायों में मान्य आगम
वर्तमान में जैन धर्म के प्रमुख चार सम्प्रदाय हैं - श्वेताम्बरमूर्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरापन्थ एवं दिगम्बर। श्वेताम्बरमूर्तिपूजक सम्प्रदाय में 45 आगम मान्य हैं। स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय 32 आगमों को मान्यता देते हैं। दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार पूर्वधर आचार्यों द्वारा रचित षट्खण्डागम, कषायपाहुड़ आदि ग्रन्थ ही आगम हैं। इन सभी सम्प्रदायों में मान्य आगम ग्रन्थों का उल्लेख विभिन्न आचार्यों एवं विद्वानों ने अपने ग्रन्थों में किया है।
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में मान्य 45 आगम
इस सम्प्रदाय में सम्मिलित खरतरगच्छ, तपोगच्छ आदि सभी उपसम्प्रदायों में 45 आगम मान्य हैं। इन 45 आगमों में 11 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्णक, 6 छेदसूत्र, 4 मूलसूत्र एवं 2 चूलिका सूत्रों की गणना की जाती है। इनके हिन्दी एवं प्राकृत भाषा के नाम नीचे दिए जा रहे हैं। कोष्ठकवर्ती नाम प्राकृतभाषा में हैं।
11 अंग 1. आचारांग (आयारो) __ 2. सूत्रकृतांग (सूयगडो) 3. स्थानांग (ठाणे)
4. समवायांग (समवाओ) 5. भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवई / वियाहपण्णत्ती) 6. ज्ञाताधर्मकथा (णायाधम्मकहाओ) 7.उपासकदशा (उवासगदसाओ) 8. अन्तकृद्दशा (अंतगडदसाओ)