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________________ को धारण करती गई और दूसरी ओर आधुनिक भारतीय भाषाओं का उदय व विकास अपभ्रंश के गर्भ में होता चला गया। प्राचीन रूपों का ह्रास व नवीन रूपों की उत्पत्ति इसी क्रम में आधुनिक भारतीय भाषाओं का उदय हुआ। अपनी अन्तिम अवस्था में अपभ्रंश ने अपनी सारी प्रवृत्तियाँ क्षेत्रिय भाषाओं को सौंप दी। स्पष्ट है कि अपभ्रंश भाषा ही हिन्दी व अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के विकास के मूल में है। हिन्दी को तो अपभ्रंश की साक्षात् उत्तराधिकारिणी भाषा माना जाता है। इस सम्बन्ध में शंभूनाथ पाण्डेय ने लिखा है कि "अपभ्रंश और हिन्दी का संबंध अत्यन्त गहरा और समृद्ध है। वे एक दूसरे की पूरक हैं। हिन्दी को ठीक से समझने के लिए अपभ्रंश की जानकारी आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। हिन्दी ही नहीं, अन्य नव्य भारतीय आर्यभाषाओं की आधारशिला अपभ्रंश ही है। उसी की कोख से इन भाषाओं का विकास हुआ है।" सहायक ग्रन्थ 1. अपभ्रंश : एक परिचय - ले. डॉ. कमलचन्द सोगाणी, अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर 2. अपभ्रंश-साहित्य : परम्परा और प्रवृत्तियाँ – ले. डॉ. राजवंश सहाय, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी 3. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास -- ले. डॉ. नेमिचन्द्रशास्त्री, तारा बुक एजेन्सी, वाराणसी 4. प्राकृत भाषाओं का व्याकरण - ले. डॉ. आर. पिशल, अ. डॉ. हेमचन्द्र जोशी, बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद, पटना 5. प्राकृत साहित्य का इतिहास - ले. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी 6. प्राकृत स्वयं-शिक्षक-ले. डॉ. प्रेमसुमन जैन, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर 000
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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