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________________ आगम शौरसेनी भाषा में ही लिखे गये हैं। प्राचीन आचार्यों ने षट्खण्डागम, कषायपाहुड आदि ग्रन्थों की रचना शौरसेनी प्राकृत में की है। आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड आदि ग्रन्थों की भाषा शौरसेनी प्राकृत ही है। इसके पश्चात् भी कई शताब्दियों तक इसमें विशाल साहित्य की रचना होती रही है। प्राचीन संस्कृत नाटकों में अधिकांश पात्र शौरसेनी का ही प्रयोग करते हैं, अतः प्रयोग की दृष्टि से इसके दो भेद हैं। (1) शौरसेनी (2) नाटकीय शौरसेनी। कर्पूरमंजरी सट्टक नाटकीय शौरसेनी का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। शिलालेखी प्राकृत लिखित रूप में प्राकृत भाषा का सर्वाधिक पुरातन जो भी साहित्य उपलब्ध है, वह शिलालेखी प्राकृतों का ही है। शिलालेखी प्राकृत के प्राचीनतम रूप अशोक के शिलालेखों में प्राप्त होते हैं। ये शिलालेख लगभग ई.पू. 300 वर्ष पहले अशोक ने देश के विभिन्न भागों में खुदवाये थे। प्राकृत उस समय जनभाषा के साथ राजभाषा का दर्जा भी प्राप्त कर चुकी थी। इन शिलालेखों की दो लिपियाँ हैं- शाहबाजगढ़ी व मनसेहरा के शिलालेख खरोष्ठी में हैं तथा शेष शिलालेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। अशोक ने इन शिलालेखों के द्वारा जीवनमूल्यों की सुन्दर प्रतिष्ठा की है। 'प्राणानां साधु अनारम्भो अपव्ययता अपभाण्डता साधु'(तृतीय शिलालेख) अर्थात् प्राणियों की अहिंसा अच्छी है, थोड़ा खर्च व थोड़ा संग्रह अच्छा है। सम्राट अशोक के पश्चात् सम्राट खारवेल का ऐतिहासिक हाथीगुम्फा शिलालेख भी प्राकृत भाषा में प्राप्त होता है। 17 पंक्तियों का यह शिलालेख तत्कालीन शासन व्यवस्था को समझाने वाली एक राजनैतिक प्रशस्ति ही है। इसके पश्चात् चौथी शताब्दी तक के करीब 2,000 लेख प्राकृत भाषा में प्राप्त होते हैं। इनमें से कुछ एक पंक्ति में हैं तथा कुछ विस्तृत भी हैं। प्राकृत का यह शिलालेखी साहित्य प्राचीन प्राकृत भाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत भाषाओं के विभिन्न रूप इसमें उपलब्ध हैं। भाषा ही नहीं सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से भी ये हमारी अमूल्य धरोहर हैं। हमारे देश भारतवर्ष के नाम का उल्लेख भरधवस के रूप में सर्वप्रथम खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख की दसवीं पंक्ति में
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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