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________________ मागधी प्रमुख थी। विद्वान गायगर ने पालि को आर्ष प्राकृत ही माना है। बाद में बुद्ध के उपदेशों को अलग करने के उद्देश्य से पालि शब्द का प्रयोग किया गया। पालि भाषा का साहित्य अत्यन्त समृद्ध व व्यापक है, लेकिन रूढ़िता के कारण पालि भाषा बुद्ध के उपदेशों व बौद्ध-साहित्य तक ही सीमित हो गई। (ख) अर्धमागधी समवायांगसूत्र में यह उल्लेख है कि भगवान् महावीर ने अर्धमागधी भाषा में उपदेश दिये थे। भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्मं आइक्खइ। (सूत्र 34.22 ) महापुरुष भगवान् महावीर द्वारा प्रयुक्त किये जाने के कारण इसे ऋषि भाषा भी कहा गया है। अर्धमागधी का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ है अर्धमागध्य अर्थात् जिसका अर्धाश मागधी कहा गया है। जैन सूत्र निशीथचूर्णि के अनुसार मगध प्रान्त के अर्धांश भाग की भाषा में निबद्ध होने के कारण प्राचीन सूत्रग्रन्थ अर्धमागध कहलाते हैं। अर्धमागधी का मूल उत्पत्ति स्थान पश्चिमी मगध तथा शूरसेन (मथुरा) का मध्यवर्ती प्रदेश अयोध्या माना गया है। इस भाषा के गठन में आधे लक्षण मागधी प्राकृत के तथा आधे अन्य प्राकृतों के विद्यमान हैं। इस कारण भी इसे अर्धमागधी कहा गया है। अकारांत पुल्लिंग शब्दों के कर्ता कारक में 'ए' (नरिंदे, देवे) का प्रयोग मागधी का लक्षण है, किन्तु 'ए' के साथ 'ओ का प्रयोग (नरिंदो, देवो) शौरसेनी प्राकृत का लक्षण है। इस भाषा का समय ई.पू. चौथी शताब्दी तय किया गया है। आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन आदि जैन सूत्रों में अर्धमागधी का प्राचीन रूप सुरक्षित है। पद्य भाग की भाषा गद्य भाग की भाषा से अधिक आर्ष प्रतीत होती है। अर्धमागधी के प्राचीन रूप का प्रामाणिक आभास हमें अशोक के उड़ीसा प्रदेशवर्ती कालसी, जोगढ़ व धौली प्रदेशों में उत्कीर्ण प्रशस्तियों से मिलता है। (ग) शौरसेनी शूरसेन प्रदेश (मथुरा) में प्रयुक्त होने वाली जनभाषा शौरसेनी के नाम से जानी गई है। इसका प्रचार मध्यदेश में अधिक हुआ था। इसका प्राचीन रूप अशोक के गिरनार के शिलालेखों में मिलता है। दिगम्बर
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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