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________________ पद्यों में प्रकृति का सजीव चित्रण हुआ है। नवचन्द्र का यह सरस चित्र दृष्टव्य है। चन्दण-चच्चिअ-सव्व-दिसंतो चारु-चओर-सुहाइ कुणन्तो। दीह-पसारिअ-दीहिइ-बुंदो दीसइ दिण्ण-रसो णव-चन्दो ॥ (3. 21) अर्थात् – समस्त दिशाओं को चंदन से चर्चित करता हुआ, सुन्दर चकोर पक्षियों को सुख प्रदान करता हुआ, अपनी किरणों के समूह को दूर तक प्रसारित करता हुआ सरस नूतन चन्द्रमा दिखाई दे रहा है। आनन्दसुन्दरी । आनन्दसुन्दरी सट्टक के रचयिता सरस्वती के अवतार महाराष्ट्रचूडामणि कवि घनश्याम हैं। कवि घनश्याम सर्वभाषा कवि माने जाते हैं। संस्कृत, प्राकृत व देशी सभी भाषाओं में इनकी रचनाएँ प्राप्य हैं। इनका समय लगभग 1700-1750 ई. है। आनंदसुंदरी प्राकृत का एक मौलिक सट्टक है, जिसकी कथावस्तु का गठन कर्पूरमंजरी के आधार पर नहीं हुआ है। इस सट्टक की कथावस्तु में राजा शिखण्डचन्द्र और अंगराज की कन्या आनंदसुंदरी के प्रेम, विवाह एवं पुत्र-प्राप्ति की घटना का वर्णन है। इस सट्टक की कथावस्तु में मौलिकता का पुट है। दो गर्भ नाटकों का विनियोजन कर कवि ने कथावस्तु की गतिशीलता को बनाये रखा है। गर्भाक की कल्पना इस सट्टक की अपनी मौलिक विशेषता है। पाठकों की रोचकता को बनाये रखने के लिए कई दृश्यों में कवि ने हास्य व व्यंग का समावेश भी किया है। भाषा वररुचि सम्मत प्राकृत है, कहीं कहीं संस्कृत का भी प्रयोग है। मराठी भाषा के बहुत से शब्द इसमें प्रयुक्त हुए हैं। इसके संवाद सारगर्भित हैं। रस, भाव, छंद, अलंकार आदि की विनियोजना की दृष्टि से यह उत्तम सट्टक है। सिंगारमंजरी शृंगारमंजरी के कर्ता कवि विश्वेश्वर पंडित का समय लगभग ___ 17वीं-18वीं शताब्दी का माना जाता है। शृंगारमंजरी सड़क का साहित्य
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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