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में महत्त्वपूर्ण स्थान है। चार जवनिकाओं में राजा राजशेखर व नायिका शृंगारमंजरी की प्रणय कथा वर्णित है। इसकी कथावस्तु अत्यंत रोचक है। इसका आधार यद्यपि राजशेखर की कर्पूरमंजरी है, किन्तु कथानक. गठन, घटना-विन्यास व वर्णनों में मौलिकता है। राजा द्वारा स्वप्न में शृंगारमंजरी को देखना, दासी द्वारा चित्र बनवाना, नायिका द्वारा आत्महत्या का प्रयास आदि घटनाएँ मौलिक हैं । बसंत, संध्या, कुंज, रात्रि, चन्द्रोदय आदि के वर्णन विशद एवं काव्यात्मक सौन्दर्य से अभिभूत हैं। शिल्प पुरातन होते हुए भी चरित्र-चित्रण एवं संवाद की दृष्टि से यह एक उत्तम कोटि की रचना है।
सहायक ग्रन्थ 1. कालिदास ग्रन्थावली - सं. रेवाप्रसाद द्विवेदी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
वाराणसी 2. प्राकृत एवं जैनागम साहित्य – ले. डॉ. हरिशंकर पाण्डेय, श्री लक्ष्मी
पब्लिकेशन कतिरा, आरा 3. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास-ले. डॉ.
नेमिचन्द्रशास्त्री, तारा बुक एजेन्सी, वाराणसी 4. प्राकृत साहित्य का इतिहास - ले. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, चौखम्बा
विद्याभवन, वाराणसी 5. मृच्छकटिकम् -- अ. डॉ. श्रीनिवास शास्त्री, साहित्य भण्डार, मेरठ
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