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________________ शब्दों के चयन द्वारा अनेक मौलिक उपमाओं का प्रयोग किया है। यथा - कर्पूरमंजरी के मुख सौन्दर्य की अभिव्यंजना करने वाला यह पद्य दृष्टव्य मा कहं पि वअणेण विब्भमो होउ इति तुह णुणामिन्दुणा। लांछणच्छलमसीविसेसओ पेच्छ बिम्बफलये णिए कओ ॥(3.32) अर्थात् – निश्चय ही तुम्हारे मुख से लोगों को (चन्द्रमा की) भ्रान्ति न हो जाए, इसलिए देखो! चन्द्रमा के द्वारा अपने चन्द्र बिम्ब में मृगचिन्ह के बहाने काला धब्बा धारण कर लिया गया है। वस्तु-वर्णन में अनुप्रास माधुर्य एवं गेयता का समावेश इस प्रकार हुआ है कि वर्ण्य विषय का चित्र आँखों के सामने प्रत्यक्ष उपस्थित हो जाता है। झूला झूलती कर्पूरमंजरी का यह चित्र दृष्टव्य है - रणन्तमणिणेउरं झणझणंतहारच्छडं कलक्कणिदकिङ्किणीमुहरमेहलाडम्बरं । विलोलवलआवलीजणिदमञ्जुसिञ्जारवं __ण कस्स मणमोहणं ससिमुहीअहिन्दोलणं?॥(2.32) अर्थात् – रत्ननिर्मित नूपुरों की झंकार से युक्त, मुक्ताहारों की झनझनाहट से परिपूर्ण, कटिसूत्र (करधनी) की घण्टियों की मनोहर आवाज से युक्त, चंचल कंगनों की पंक्ति से उत्पन्न हुए सुन्दर शब्दों से युक्त, यह चन्द्रमुखी कर्पूरमंजरी के झूलने की क्रिया किसके मन को नहीं मोह लेती है, अर्थात् सभी के मन को आकर्षित कर रही है। रम्भामंजरी कर्पूरमंजरी के पश्चात् प्राकृत सट्टक की परम्परा में रंभामंजरी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके रचयिता मुनि नयचन्द्र षड्भाषविद् कवि थे। कवि नयचन्द्र का समय लगभग 14वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना गया है। कर्पूरमंजरी के आधार पर लिखे गये इस सट्टक को कवि ने कर्पूरमंजरी से अधिक श्रेष्ठ माना है। तीन जवनिकाओं वाले इस सट्टक में वाराणसी के राजा जैत्रचन्द्र व लाटदेश की राजकुमारी रंभामंजरी की प्रणय कथा वर्णित है।
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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