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________________ महादेव कवि द्वारा विरचित अद्भुत दर्पण में सीता, त्रिजटा, सरमा, आदि स्त्री पात्र एवं विदूषक ने संवादों में प्राकृत भाषा का ही प्रयोग किया है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यद्यपि प्राकृत में स्वतंत्र रूप से लिखा कोई नाटक प्राप्त नहीं है, किन्तु ईसा की प्रथम शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककारों ने अपने नाटकों में प्राकृत भाषा का प्रचुर प्रयोग करते हुए इसकी महत्ता को स्वीकारा है । प्राकृत सट्टक भारतीय साहित्य की नाट्य परम्परा में सट्टक साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सट्टक साहित्य का सम्बन्ध प्रायः लोकजीवन की विविध प्रवृत्तियों से होता है । नृत्य द्वारा इसका अभिनय किया जाता है। इसका उद्देश्य लोकनृत्यों, चर्चरी, आश्चर्यजनक घटनाओं तथा श्रृंगार के विभिन्न आयामों द्वारा लोक अनुरंजन करना होता है स्वरूप एवं विशेषताएँ सट्टक शब्द देशी है, जो बाद में संस्कृत में रूढ़ हो गया। सट्टक शब्द की विभिन्न परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं। कर्पूरमंजरी में सट्टक की परिभाषा इस प्रकार दी गई है सो सट्टओत्ति भइ दूरं जो, णाडिआई अणुहरइ । किं उण एत्थ पवेसअविक्कंभाइं न केवलं होंति ।। ( 1.6 ) 1 अर्थात् सट्टक वह कहा जाता है, जो नाटिका का अनुसरण करता है, किन्तु इसमें प्रवेशक और विष्कम्भक नहीं होते हैं । यद्यपि आचार्य भरत ने नाट्यशास्त्र में सट्टक का उल्लेख नहीं किया था, परन्तु नाट्यशास्त्र के टीकाकार अभिनवगुप्त ( 10वीं शताब्दी) ने अपनी टीका में सट्टक को नाटिका के समान ही बताया है। 12वीं शताब्दी के आचार्य हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन में सट्टक को परिभाषित करते हुए कहा है कि सट्टक नाटिका के समान होता है। इसमें प्रवेशक व विष्कम्भक नहीं होते हैं तथा सट्टक की रचना अकेले प्राकृत भाषा में ही होती है, नाटिका की तरह संस्कृत व प्राकृत दोनों में नहीं । आधुनिक विद्वानों में डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने -
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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