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________________ संस्कृत नाटकों में प्राकृत प्राकृत भाषा का प्रथम नाटकीय प्रयोग संस्कृत नाटकों में ही प्राप्त होता है। भरत ने अपने नाट्यशास्त्र में संस्कृत नाटकों में विभिन्न पात्रों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं का निर्देश करते हुए कहा है कि राजा, राजपत्नी, उच्च वर्ग के पुरुष और महिलाएँ, भिक्षुणी, मंत्री, मंत्रियों की पुत्रियाँ एवं कलाकार संस्कृत में भाषण करते हैं तथा श्रमण, तपस्वी, विदूषक, उन्मत्त, बाल, निम्न वर्ग के स्त्री-पुरुष, अनार्य, अप्सराएँ एवं स्त्री पात्र प्राकृत में। इसी कारण संस्कृत नाटकों का अर्ध भाग संस्कृत में होता है तथा अर्ध भाग प्राकृत में रहता है । यहाँ संस्कृत के कुछ प्रमुख नाटकों का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है, जिनमें विभिन्न प्राकृतों का विपुल प्रयोग हुआ है। अश्वघोष के नाटक संस्कृत नाटकों में प्राकृत भाषा का सर्वप्रथम प्रयोग अश्वघोष के नाटकों में प्राप्त होता है । अश्वघोष का समय लगभग ई. सन् की पहली शताब्दी माना गया है । अश्वघोष के शारिपुत्रप्रकरण एवं अन्य दो अधूरे नाटक ताड़पत्रों पर प्राप्त हुए हैं। शारिपुत्रप्रकरण नौ अंकों का प्रकरण है, जिसमें गौतम बुद्ध द्वारा मौद्गलायन और शारिपुत्र को बौद्ध धर्म में दीक्षित किये जाने का वर्णन है । अश्वघोष के नाटकों में प्रयुक्त प्राकृत के अध्ययन के पश्चात् विद्वानों ने यही निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि इन नाटकों में अर्धमागधी, मागधी एवं शौरसेनी के प्राचीनतम् रूप उपलब्ध हैं। इन नाटकों की प्राकृत भाषाएँ अशोक के शिलालेखों की प्राकृतों के अधिक निकट हैं भाषा व साहित्य दोनों के ही इतिहास की दृष्टि से अश्वघोष के नाटकों में प्रयुक्त प्राकृतों का अस्तित्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। I भास के नाटक अश्वघोष के पश्चात् महाकवि भास ने अनेक संस्कृत नाटकों की रचना की है। भास का समय लगभग तीसरी शताब्दी माना गया है। भास द्वारा रचित विभिन्न नाटकों में चारुदत्त एवं अविमारक महत्त्वपूर्ण हैं । इन 121
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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