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________________ 9 नाटक - साहित्य में प्राकृत एवं प्राकृत सट्टक 12वीं शताब्दी तक प्राकृत भाषा जनभाषा एवं साहित्यिक भाषा दोनों ही रूपों में प्रचलित रही है । अतः प्राकृत भाषा में कथा, चरित, मुक्तक, महाकाव्य, खण्डकाव्य आदि विधाओं में लिखा विपुल साहित्य मिलता है । इस विशाल साहित्य के आधार पर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि प्राकृत भाषा में नाटक - साहित्य की रचना भी अवश्य हुई होगी, क्योंकि नाटक लोकजीवन की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है । नाटकों के माध्यम से ही रंगमंच पर लोकसंस्कृति के रहन-सहन, रीति-रिवाज, वेश-भूषा आदि की साक्षात् प्रस्तुति होती है। लेकिन आज कोई भी ऐसा नाटक उपलब्ध नहीं है, जो स्वतंत्र रूप से आद्योपांत प्राकृत भाषा में लिखा हुआ हो । प्राकृत भाषा के उपलब्ध विशाल साहित्य को देखकर यह बात असंभव सी प्रतीत होती है कि प्राकृत में किसी नाटक की रचना नहीं हुई हो। फिर संस्कृत नाटकों में विभिन्न पात्रों द्वारा विविध प्राकृतों का प्रयोग किया जाना इस तर्क को अधिक मजबूत करता है कि कतिपय नाटक साहित्य की रचना सम्पूर्णतया प्राकृत भाषा में अवश्य हुई होगी, किन्तु संस्कृत के प्रभाव के कारण वे नाटक या तो नष्ट हो गये या उनका संस्कृतिकरण हो गया और उनका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहा । आगे चलकर तो संस्कृत का वर्चस्व इतना बढ़ा कि संस्कृत नाटकों के प्राकृत अंशों को भी संस्कृत छाया द्वारा समझाया जाने लगा । उक्त विवेचन से यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि आद्योपांत प्राकृत भाषा में लिखा प्राकृत का कोई नाटक आज उपलब्ध नहीं है, अतः नाटक - साहित्य में प्राकृत का स्वरूप जानने के लिए हमें संस्कृत नाटकों में प्रयुक्त विविध प्राकृतों का अध्ययन करना होगा ।
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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