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________________ तीर्थकरों, 12 चक्रवर्तियों, 9 वासुदेवों, 9 बलदेवों को मिलाकर चौवन शलाका पुरुषों का जीवन-चरित ग्रथित किया है। ऋषभदेव, भरत चक्रवर्ती, शान्तिनाथ, मल्लिनाथ और पार्श्वनाथ के जीवन-चरित का इसमें विस्तार से निरूपण हुआ है। इस चरितकाव्य का उद्देश्य शुभ-अशुभ कर्म परिणामों की विवेचना करना है, अतः मूल चरित-नायकों के पूर्वभवों का विवेचन भी ग्रन्थ में हुआ है। मूलकथानकों के साथ अनेक अवान्तर कथाओं के गुम्फन द्वारा जन्म-जन्मान्तरों के संस्कारों, विकारों, आसक्तियों, निदान आदि का भी विश्लेषण किया गया है। वस्तुतः यह चरितकाव्य सांसारिक नश्वरता के बीच-बीच में जीवन के विराट रूप को प्रस्तुत करता है। दान, दया, करुणा आदि मानवीय मूल्यों का भी इसमें सुन्दर अंकन हुआ है। जीव-दया एवं पक्षियों के प्रति करुणा के फल का संदेश देने वाली यह गाथा दृष्टव्य है पक्खीण सावयाण य विच्छोयं ण करेड जो परिसो। जीवेसु य कुणइ दयं तस्स अवच्चाई जीवंति ॥ (सुमतिसामिचरियं गा.81) __ अर्थात् – पक्षियों के बच्चों का जो व्यक्ति वियोग नहीं करता है और जीवों पर दया करता है, उसकी संतति चिरंजीवी होती है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस ग्रन्थ में प्रचुर सामग्री है। युद्ध, विवाह, जन्म, उत्सवों आदि के वर्णन-प्रसंगों में तत्कालीन सामाजिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों की झलक दृष्टिगत होती है। जंबूचरियं जंबूचरित प्राकृत का गद्य-पद्य मिश्रित पौराणिक चरितकाव्य है। इसके रचयिता वीरभद्रसूरि के प्रशिष्य गुणपाल मुनि हैं। इसका रचनाकाल अनुमानतः 9वीं शताब्दी माना गया है। इस चरितकाव्य का मूल स्रोत वसुदेवहिण्डी नामक कथाग्रन्थ है। प्रस्तुत चरितकाव्य की कथावस्तु 16 उद्देशों में विभक्त है, जिनमें अंतिम केवली जंबूस्वामी के आदर्श जीवन-चरित्र को समग्रता के साथ वर्णित किया गया है। नायक के चरित को विकसित करने के लिए वर्तमान जीवन के साथ-साथ उनके पूर्वभवों के विभिन्न प्रसंगों को भी मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। जंबूकुमार के
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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