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________________ उदारता, धैर्य, कर्त्तव्य-पालन, क्षमा, पश्चाताप आदि गुणों का समावेश कर हर परिस्थिति में उनके चरित्र को ऊँचा उठाया है। नायिका सीता के चरित्र में विनम्रता, त्याग, सहिष्णुता, वात्सल्य और पति के प्रति अटूट प्रेम एवं श्रद्धा आदि गुणों का समावेश कर उसे आदर्श नारी के रूप में उपस्थित किया है। प्रतिनायक रावण को भी धार्मिक व व्रती पुरुष के रूप में अंकित किया गया है। वह प्रारम्भ में सीता पर मोहित अवश्य होता है, किन्तु बाद में युद्ध में राम-लक्ष्मण को जीतकर सम्मान सहित सीता को उन्हें लौटाने की बात भी सोचता है। रावण की यह विचारधारा उसके चरित्र को उदात्त भूमि पर प्रतिष्ठित करती है। अन्य पात्रों के चरित्र भी विकसित हैं। यथा - राजा दशरथ पुत्र के वियोग में कायरों की तरह प्राणों का त्याग नहीं करते हैं, अपितु निर्भय वीर की भाँति श्रमण दीक्षा अंगीकार कर आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर होते हैं। कैकेयी के चरित्र में भी मातृ- वत्सलता का गुण उजागर हुआ है। वह वात्सल्य भाव से प्रेरित होकर ही भरत के लिए राज्य चाहती है। इस प्रकार प्रायः सभी चरित अपनी अपनी स्वाभाविक विशेषताओं के साथ प्रस्तुत हुए हैं। काव्यात्मक सौन्दर्य की दृष्टि से यह चरितकाव्य अद्वितीय है। समुद्र, वन, पर्वत, नदी, सूर्यास्त, नख-शिख, आदि के वर्णन महाकाव्यों की भाँति सजीव हैं। रस, भाव व अलंकारों की कवि ने स्वाभाविक योजना प्रस्तुत की है। भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है। यत्र-तत्र अपभ्रंश का प्रभाव है। भाषा में प्रवाह व सरलता है। भाषा को सजीव बनाने के लिए सूक्तियों का प्रचुर प्रयोग किया गया है। यथा - हनुमान रावण को समझाते हुए कहते हैं पत्ते विणासकालो नासइ बुद्धिं नराण निक्खुत्तं। (गा. 53.138) अर्थात् – विनाशकाल आने पर मनुष्य की बुद्धि निश्चित रूप से नष्ट हो जाती है। चउपन्नमहापुरिसचरियं चौवनमहापुरुषचरित आचार्य शीलांकाचार्य द्वारा रचित विशालकाय ग्रन्थ है। विद्वानों ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इसका रचनाकाल ई. सन् 868 निर्धारित किया है। आचार्य शीलांकाचार्य ने इस चरितकाव्य में 24
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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