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________________ रचना के लिए नायक के चरित का स्वाभाविक एवं द्वन्द्वात्मक विकास आवश्यक होता है। चरितकाव्य का नायक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का सतत् प्रयास करता है। शैली में गंभीरता, उदारता एवं रुचिरता भी चरितकाव्यों के लिए आवश्यक है। प्राकृत के प्रमुख चरितकाव्यों का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। प्राकृत के प्रमुख चरितकाव्य पउमचरियं जैन साहित्य में महापुरुषों के जीवन-चरित को नवीन काव्य शैली में प्रस्तुत करने वाले प्रथम विद्वान विमलसूरि थे। उन्होंने वाल्मीकि रामायण की कथा के आधार पर महाराष्ट्री प्राकृत में पउमचरिय की रचना की। प्रशस्ति में इसका रचनाकाल ई. सन् की प्रथम शताब्दी दिया गया है, किन्तु विद्वान विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इसे तीसरी-चौथी शताब्दी की रचना मानते हैं। विमलसूरि का यह ग्रन्थ प्राकृत का आदि चरितकाव्य ग्रन्थ माना जाता है। प्रस्तुत चरितकाव्य में 118 सर्ग हैं, जिनमें राघव के चरित्र को विस्तार से प्रतिपादित किया गया है। इसी चरितकाव्य की परम्परा में आगे चलकर रविषेण ने पद्मचरित की रचना की है। विमलसूरि ने इस चरितकाव्य में वाल्मीकि रामायण की कथा को कुछ संशोधनों के साथ प्रस्तुत कर अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया है। यथा - इसमें राक्षस व वानर दोनों को ही नृवंशीय कहा है। इसी प्रकार इंद्र, सोम, वरुण इत्यादि को देव न मानकर विभिन्न प्रान्तों के मानव वंशी सामन्तों के रूप में चित्रित किया है। सीता को जनक व उसकी पत्नी विदेहा की औरस पुत्री माना है। रावण के दशानन नाम का स्पष्टीकरण करते हुए कहा गया है कि नौ मणियों के हार में उसके नौ प्रतिबिम्ब दृश्यमान होने के कारण पिता ने उसका नाम दशानन रख दिया। इस प्रकार विमलसूरि ने वाल्मीकि रामायण की अनेक बातों को यथार्थ रूप देकर बुद्धिवाद की प्रतिष्ठा की है। चरितकाव्य के प्रधान गुण के अनुसार इस सम्पूर्ण चरितकाव्य में नायक राम का चरित उत्तरोत्तर विकसित हुआ है। राम के चरित में
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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