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________________ व कथा-विस्तार की दृष्टि से कदली के स्तंभ की तरह मूल कथानक के साथ अनेक अवान्तर कथाएँ गुम्फित हुई हैं। मूल कथानक के पात्रों के पूर्वभवों के कथानक को समाहित करते हुए क्रोध, मान, माया, लोभ एवं मोह इन पाँचों अमूर्त पात्रों को मूर्त पात्रों का रूप देकर उनकी कथावस्तु को मूल कथानक के साथ प्रस्तुत किया है। प्राकृत साहित्य में इस प्रकार की प्रतिकात्मक शैली का प्रयोग करने वाले उद्योतनसूरि प्रथम आचार्य थे। सम्पूर्ण कथानक में पूर्वजन्म व कर्मफल की सम्बंध श्रृंखला को विवेचित करते हुए अंत में आत्मशोधन द्वारा मुक्ति प्राप्ति का मार्ग दिखाया गया है। वस्तुतः कुवलयमालाकहा द्वारा असवृत्तियों पर सवृत्तियों की विजय का संदेश देकर आचार्य ने व्यक्ति के नैतिक आचरण को उठाने का प्रयास किया है। चंडसोम, मानभट्ट, मायादित्य, लोभदेव और मोहदत्त ये पाँचों पात्र अपने-अपने नाम व गुण के अनुसार अपनी पराकाष्ठा को लांघते हुए दुष्कृत्य, पाप आदि में लिप्त रहते हैं, जिनका फल नरक की यातना भोगने के अलावा कुछ नहीं हो सकता है, लेकिन आचार्य ने मानव जीवन के इस अंधकारमय पहलू को प्रकाशित करने के लिए इन पात्रों के अगले चार जन्मों की कथा का निर्माण किया। अपने अगले भवों में ये पात्र, स्व-निरीक्षण, पश्चाताप व आत्मशोधन द्वारा असमानसिक-वृत्तियों का परिष्कार कर संयम व तप द्वारा उन्हें सवृत्तियों में परिवर्तित कर मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होते हैं। ___जहाँ अपनी मौलिक कथावस्तु के कारण कुवलयमालाकहा प्राकृत कथा-ग्रन्थों में विशिष्ट स्थान रखती है, वहीं इसकी महत्ता अपनी भाषागत समृद्धि के कारण कहीं अधिक है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, पैशाची, आदि सभी भाषाओं के उद्धरण इसमें मिलते हैं। 18 देशी भाषाओं का इसमें उदाहरण सहित प्रयोग हुआ है। काव्यात्मक सौंदर्य की दृष्टि से भी यह कथाग्रन्थ अद्वितीय है। रस, छंद, अलंकार योजना में कवि सिद्धहस्त हैं। तत्कालीन समाज व संस्कृति के महत्त्वपूर्ण पहलू इसमें उजागर हुए हैं। आठवीं शताब्दी के अभिजात्य वर्ग, शासन व्यवस्था, धार्मिक जगत, आर्थिक-जीवन, वाणिज्य-व्यापार, शिक्षा आदि के यथार्थ चित्र इसमें अंकित हैं।
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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