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________________ ७. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पारंगत होना चाहिए। सर्वभूतानुकंपी वह सम्पूर्ण जीवनिकाय का शरणभूत हो। उसका उपदेश केवल व्यष्टि के लिए ही नहीं समष्टि के लिए होता है; जिसमें जीवनोत्थान के शाश्वत तत्त्व निहित रहते हैं। यह स्मरण रखना चाहिए कि उपदेश देने वाले साधक को अन्य की आशातना व अवहेलना नहीं करनी चाहिए। जैसे पराक्रमी योद्धा रण-क्षेत्र में सबसे आगे रहकर शत्रुओं के साथ भयंकर युद्ध कर विजय प्राप्त करता है वैसे ही साधक को महान् उपसर्गों को सहन कर मृत्युकाल सन्निकट आने पर पादपोपगमन आदि संथारा कर, आत्मा शरीर से पृथक् न हो जाय तब तक आत्मचिन्तन में स्थिरभाव से रहना चाहिए। सातवें अध्ययन का नाम महापरिज्ञा अथवा महापरिन्ना अध्ययन है। यह अध्ययन वर्तमान में अनुपलब्ध है किन्तु इस पर लिखी हुई नियुक्ति आज भी उपलब्ध है। इससे यह सहज ही परिज्ञात होता है कि नियुक्तिकार के सामने यह अध्ययन था। नियुक्तिकार ने महापरिज्ञा के महा और परिज्ञा इन दो पदों का विश्लेषण करने के साथ परिन्ना के प्रकारों पर भी प्रकाश डाला है और यह बताया है कि साधक को देवांगना, नरांगना व तिर्यचांगना-इन तीनों का मन, वचन और काया से त्याग करना चाहिए। यह त्याग ही महापरिज्ञा है । नियुक्तिकार के शब्दों में प्रस्तुत अध्ययन का विषय है-मोहजन्य परीषह अथवा उपसर्ग। इस पर आचार्य शीलांक ने वृत्ति में लिखा है कि संयमी श्रमण को साधना में विघ्न रूप से उत्पन्न होने वाले मोहजन्य परीषहों अथवा उपसगों को समभावपूर्वक सहन करना चाहिए। स्त्री-संसर्ग भी एक मोहजन्य परीषह है; अतः उससे दूर रहना चाहिए। आचारांग नियुक्ति, वृत्ति व चूणि से यह स्पष्ट नहीं होता कि महापरिज्ञा अध्ययन में विविध मंत्रों एवं महत्त्वपूर्ण विद्याओं का समावेश था किन्तु पारम्परिक जनश्रुति है कि उसमें अनेक मंत्र व विशिष्ट विद्याएँ थीं। कहीं साधक इनका दुरुपयोग न कर दे, अत: आचार्यों ने इस अध्ययन की वाचना देना बन्द कर दिया। फलस्वरूप यह अध्ययन शनैः शनैः लुप्त हो गया। हमने जिसे जनश्रुति कहा है वह केवल कमनीय कल्पना की उड़ान १. आचारांग नियुक्ति, प्रथम श्रुतस्कन्ध, ६० से ६८ तक
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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