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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ७१ नहीं है किन्तु ऐतिहासिक सत्य-तथ्य है। जैसे, आर्य ववस्वामी ने महापरिज्ञा अध्ययन से आकाशगामिनी विद्या उपलब्ध की थी। आचारांगणि में स्पष्ट लिखा है कि बिना अनुमति के महापरिज्ञा अध्ययन नहीं पढ़ा जाता था। इससे स्पष्ट है कि महापरिज्ञा अध्ययन में कुछ विशिष्ट बातें थीं जिनका बोध प्रत्येक सामान्य साधक के लिए वर्जनीय था। आठवें अध्ययन के दो नाम उपलब्ध होते हैं-(१) विमोक्ष और (२) विमोह। इस अध्ययन के आठ उद्देशक हैं। प्रस्तुत अध्ययन के मध्य में "इच्चेयं विमोहाययणं" तथा "अणुपुथ्वेण विमोहाई" एवं अन्त में विमोहन्नबरहियं प्रभृति पदों में विमोह शब्द का प्रयोग हुआ है। संभव है इसी दृष्टि से प्रस्तुत अध्ययन का नाम विमोह अध्ययन रक्खा गया हो। विमोक्ष और विमोह इन दोनों शब्दों में अर्थ की दृष्टि से विशेष अन्तर नहीं है। विमोक्ष का अर्थ है-सभी प्रकार के संग से पृथक हो जाना और विमोह का अर्थ है मोह-रहित होना। ये दोनों शब्द इस अध्ययन में समस्त भौतिक संसर्गों के परित्याग के अर्थ में व्यवहृत हुए हैं। प्रथम उद्देशक में श्रमणों के लिए यह निर्देश है कि अपने से भिन्न . आचार व भिन्न धर्म वाले श्रमणों के साथ अशन-पान न करें और न वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपुंछण आदि का आदान-प्रदान ही करें । मुनि के लिए यह कल्प निर्धारित है कि वह सार्मिक मुनि को ही आहार दे और ले सकता है। सामिक पाश्र्वस्थ आदि शिथिलाचार वाला मुनि भी हो सकता है किन्तु मुनि उसको न तो आहार दे सकता है और न ले सकता है। एतदर्थ ही निशीथ में उसके साथ दो विशेषण सांभोगिक और समनुज्ञ जोड़े गये हैं। कल्प मर्यादा की दृष्टि से जिसके साथ आहारादि का सम्बन्ध होता है वह सांभोगिक कहलाता है और जिसकी समाचारी समान होती है वह समनुज्ञ है। निशीथ में 3 अन्यतीथिक, गृहस्थ, पावस्थ आदि को अशन-वस्त्र-पात्रकम्बल-पायपोंछनादि देने पर प्रायश्चित का उल्लेख किया है। द्वितीय उद्देशक में श्रमण को यह आदेश दिया है कि वह अकल्पनीय १ (क) आवश्यक नियुक्ति-मलयगिरि वृत्ति ७६६, पृ० ३६० (ख) प्रभावक चरित्र १४८ गाथा २ निसीहज्झयणं १४४ . . ३ . १५२७६-६७
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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