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________________ ६६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा विराट् विश्व में जितने भी जीव हैं वे सभी तेरे जातीय भाई हैं, जैसी तुझमें चेतना-शक्ति है वैसी ही चेतना-शक्ति उनमें भी है। उन्हें भी सुखदुःख का संवेदन होता है, अतः किसी भी प्रकार से उनका वध नहीं करना चाहिए; उन्हें परिताप भी नहीं देना चाहिए और न ताड़न, तर्जन व बंधन में ही डालना चाहिए। . द्वितीय अध्ययन का नाम लोकविजय है। यह अध्ययन छह उद्देशकों में विभक्त है। इसमें अनेक बार लोक शब्द का प्रयोग हआ है। पर विजय शब्द का प्रयोग कहीं पर भी उपलब्ध नहीं होता तथापि संपूर्ण अध्ययन में लोकविजय का उपदेश प्रधान रूप से आया है अतः प्रस्तुत अध्ययन का नाम लोकविजय है। लोक दो प्रकार का है-(१) द्रव्यलोक और (२) भावलोक । जिस क्षेत्र में मानव-पशु-पक्षी आदि निवास करते हैं वह द्रव्यलोक है और कषाय को भावलोक कहा है। प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है-वैराग्य की अभिवृद्धि करना, संयम साधना की भावना को दृढ़ करना, जातिगत मिथ्या अहंकार को दूर करना, भोगों की आसक्ति एवं भोजनादि के निमित्त होने वाले आरम्भसमारम्भ का परित्याग करना और ममत्व-भाव को छोड़कर अनासक्त जीवन जीना । कषाय लोक से ही जीव द्रव्यलोक में परिभ्रमण करता है। अत: शास्त्रकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा-'जो गुण है वही मूलस्थान है और जो मूलस्थान है वही गुण है।' तात्पर्य यह है कि विषय-कषाय ही संसार है और संसार ही विषय-कषाय है। अतः विषय-कषाय पर विजय-वैजयन्ती फहराने वाला साधक ही सच्चा लोक विजेता है। 'तृतीय अध्ययन का नाम शीतोष्णनीय है। इसके चार उद्देशक हैं। यहाँ पर शीत और उष्ण का अर्थ अनुकूल एवं प्रतिकूल परीषह है । स्त्री और सत्कार ये शीत परीषह के अन्तर्गत हैं और शेष २० परीषह उष्ण हैं। साधक-जीवन में कभी अनुकूल परीषह आते हैं और कभी प्रतिकूल । श्रमण दोनों प्रकार के परीषहों को समभावपूर्वक सहन करता है किन्तु साधना के पथ से कभी भी विचलित नहीं होता। साधक को प्रतिपल प्रतिक्षण जाग्रत रहने का उपदेश दिया गया है। भगवान महावीर ने स्पष्ट शब्दों में कहा'सुत्ता अमुणी मुणिणो सया जागरंति' । साधक कभी भी भावनिद्रा में नहीं सोता। वह तो द्रव्यनिद्रा लेते हुए भी सदा जाग्रत रहता है। द्वितीय उद्देशक
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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