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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ६५ पद्य भी विपुल मात्रा में हैं इसलिए इसकी शैली चौर्ण शैली मानी गई है। समवायाङ्ग और नन्दी में भी आचारांग का परिचय प्रदान करते हुए बताया है कि उसमें संख्येय वेष्टक और संख्येय श्लोक हैं। .. आचारांग के आठवें अध्ययन के सातवें उद्देशक तक की रचना शैली चौर्ण है और आठवाँ उद्देशक तथा नौवाँ अध्ययन पद्यात्मक है । आचार चूला के पन्द्रह अध्ययन मुख्य रूप से गद्यात्मक हैं, उनमें कहीं-कहीं पर पद या संग्रह गाथाएं भी उपलब्ध होती हैं। सोलहवां अध्ययन पद्यात्मक है। डा० शुबिंग ने आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध के पद्यों की तुलना बौद्ध पिटक ग्रन्थ सुत्तनिपात के साथ की है। उसने आचारांग में व्यवहत पद्यों के छन्दों पर भी प्रकाश डाला है। प्रथम श्रुतस्कन्ध प्रस्तुत आगम दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में नौ अध्ययन हैं। प्रथम अध्ययन का नाम शस्त्र-परिज्ञा है। इसमें शस्त्र शब्द का प्रयोग अनेक बार हुआ है। तात्पर्य यह है कि 'ज्ञ' परिज्ञा से शस्त्रों की भयंकरता और उनके प्रयोग से होने वाली हिंसा आदि को जानकर प्रत्याख्यान परिज्ञा से शस्त्रों का त्याग करना चाहिए। साधना पथ पर प्रगति करने वाले साधक को द्रव्य और भाव ये दोनों प्रकार के शस्त्रों का परित्याग करना आवश्यक है। आचारांग सूत्र का प्रारंभ आत्म-जिज्ञासा से होता है। जैसे वेदान्तदर्शन का 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा मूल सूत्र है वैसे ही जैनदर्शन का 'अथातो आत्मजिज्ञासा' मूल सूत्र है । आत्मा है, वह नित्यानित्य है, कर्ता है, भोक्ता है, बंध है, उसके हेतु हैं, मोक्ष है, उसके हेतु हैं। इन सब आधारभूत तत्त्वों की इसमें चर्चा की गई है। . प्रथम अध्ययन के सात उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में समुच्चय रूप से जीव हिंसा न करने का उपदेश दिया गया है। शेष छह उद्देशकों में क्रमशः पृथ्वी, पानी, अग्नि, वनस्पति, वसकाय और वायुकाय के जीवों का विवेचन किया गया है और साधक को यह परिज्ञान कराया है कि इन योनियों में तू एक बार नहीं अपितु अनेक बार उत्पन्न हुआ है। इस १ समवायांग प्रकीर्णक समवाय सूत्र ८६ २ संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा। -नवीसूत्र, ५०
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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