________________
१२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा (२) आचाल-यह निविड बंध को आचालित करता है अतः
आचाल है। (३) आगाल-चेतना को सम घरातल में अवस्थित करता है अतः
आगाल है। (४) आगर---यह आत्मिक-शुद्धि के रत्नों को पैदा करने वाला है
अत: आगर है। (५) आसास-यह संत्रस्त चेतना को आश्वासन प्रदान करने में
सक्षम है अतः आश्वास है। (६) आयरिस- इसमें 'इतिकर्तव्यता' देख सकते हैं अत: यह
आदर्श है। (७) अङ्ग-यह अन्तस्तल में अहिंसा आदि भाव जो रहे हुए हैं
उनको व्यक्त करता है अत: अंग है। (5) आईण्ण-प्रस्तुत आगम में आचीर्ण-धर्म का निरूपण किया
गया है अत: यह आचीर्ण है। (९) आजाइ-इससे ज्ञान आदि आचारों की प्रसूति होती है अतः
आजाति है। (१०) आमोक्ख-बंधन-मुक्ति का यह साधन है अत: आमोक्ष है।
आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम ब्रह्मचर्याध्ययन भी है। समवायांग में इसके अध्ययनों को 'नव ब्रह्मचर्य' कहा है। आचारांग नियुक्ति में इसे 'नव ब्रह्मचर्याध्ययनात्मक' बताया है। समवायाङ्ग' और आचारांग नियुक्ति में अध्ययनों के जो नाम उपलब्ध होते हैं, उनमें यत्किञ्चित् अन्तर है। नामभेद भी है और क्रमभेद भी है। जैसेसमवायांग
आचारांग नियुक्ति सत्थपरिणा
सत्थपरिण्णा लोगविजय
लोगविजय सीओसणिज्ज
सीओसणिज्ज
१ णव बंमचेर पण्णत्ता २ णव बंभचेर महओ ३ समवायांग, समवाय ६, सूत्र ३ ४ : आचारांग नियुक्ति, गाथा ३१-३२
-समवायांग प्रकीर्णक ९, सूत्र ३ -आचारांग नियं क्ति गा०११