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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
आचाराम आचारांग का परिशिष्ट अथवा पश्चात्वर्ती काल में जोड़ा हुआ भाग हो।
सर्वप्रथम नियुक्तिकार ने अपना अभिमत प्रस्तुत करते हुए लिखा समवायाङ्ग और नन्दी में आचारांग का जो पद परिमाण १८००० बताया गया है वह पद परिमाण केवल ब्रह्मचर्याध्ययन नामक आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का ही पद परिमाण है। पांच चूलाओं सहित आचारांग की पद संख्या बहुत अधिक और अधिकतर है। उसके पश्चात् नन्दी चूर्णि में और समवायाङ्ग की वृत्ति में आचार्य अभयदेव ने नियुक्तिकार के कथन का समर्थन किया है। पर प्रश्न यह है कि आचारांग की भांति दो श्रतस्कंध वाले अन्य आगम भी हैं। उन आगमों में प्रथम श्रुतस्कंध की पद संख्या से दूसरे श्रुतस्कंध की पद-संख्या पृथक् नहीं बताई है। सूत्रकृताङ्ग, ज्ञाताधर्मकथा, प्रश्नव्याकरण और विपाक इन चारों अंगों के पद परिमाण प्रत्येक के दोनों श्रुतस्कंधों को मिलाकर माने हैं । ऐसी स्थिति में केवल आचारांग के दोनों श्रुतस्कन्धों का पद परिमाण पृथक-पृथक बताते हए केवल प्रथम श्रुतस्कंध का ही पद परिमाण १८००० किस आधार से लिखा है इसका स्पष्टीकरण नियुक्ति, चूर्णि और वृत्ति में कहीं पर भी नहीं किया गया है।
दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ धवला और अंगपण्णत्ती में भी आचारांग की पद संख्या १८००० मानी है। उनमें आचारांग के विषयों का जो परिचय प्रदान किया गया है वह आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में प्रतिपादित विषयों के साथ पूर्णरूप से मिलता है।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समवायाङ्ग व नन्दी में बारहवें अंग दृष्टिवाद ने तृतीय भेद 'पूर्वगत' के १४ पूर्वो में से आदि के चार पूर्वी को छोड़कर शेष किसी भी अंग की चूलिकाओं का अस्तित्व नहीं बताया है। जहाँ प्रत्येक अंग के श्रुतस्कन्ध, अध्ययन, उद्देशक, पद और अक्षरों
१ आचारांम नियुक्ति, १ श्रुतस्कन्ध, गा० ११ २ अट्ठारस पयसहस्साणि पुण पढमसुयक्खंघस्स, नवबंभचेरमइयस्स पमाणं विचित्तस्थाणि य सुत्ताणि गुरुवएसओ तेसि अत्यो जाणिअब्बो ।
- नन्वोचूणि ३ समवायांगटीका-रायधनपतिसिंह द्वारा प्रकाशित, पत्र ५४ (२)