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________________ - अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ५७ . आचार्य हेमचन्द्र ने परिशिष्ट पर्व में प्रस्तुत साध्वी यक्षा की घटना देते हुए लिखा है कि भगवान सीमंधर ने (१) भावना, (२) विमुक्ति, (३) रतिवाक्या (रतिकल्प) ४ और विविक्तचर्या ये चार अध्ययन प्रदान किये। संघ ने पहले दो अध्ययन आचारांग की तीसरी और चौथी चूलिकाओं के रूप में और अन्तिम दो अध्ययन दशवकालिक की चूलिकाओं के रूप में स्थापित किये । आवश्यक चूर्णि में दो अध्ययनों का वर्णन है तो परिशिष्ट पर्व में चार अध्ययनों का। दो का संवर्धन आचार्य हेमचन्द्र ने कैसे किया? आचारांग नियुक्ति और दशवकालिक नियुक्ति में प्रस्तुत घटना का कोई भी उल्लेख नहीं है फिर आवश्यक चुणि में वह कैसे आगई ? यह शोधार्थियों के लिए अन्वेषण का विषय है।२ आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के रचनाकार कौन हैं ? इस प्रश्न पर विस्तार से चर्चा करते हुए आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज ने लिखा है कि 'समवायाङ्ग और नन्दीसूत्र में जो आचारांग का परिचय दिया गया है उससे ही स्पष्ट है कि आचारांग अंग की अपेक्षा से प्रथम अंग है, इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं, ८५ उद्देशन काल हैं और १८००० पद हैं। यदि आचारांग सूत्र का द्वितीय श्रुतस्कन्ध अर्थत: भगवान महावीर द्वारा कथित और शब्दत: गणधरों द्वारा ग्रथित नहीं होता तो इसे आगमों के मूलपाठ में इस प्रकार आचारांग का अभिन्न अंग कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता था। मूलपाठ से ऐसा कहीं पर भी प्रतीत नहीं होता कि आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध आचारांग का अभिन्न अंग न होकर १ श्रीसंघायोपदां प्रेषीन्मन्मुखेन प्रसादमाक् । श्रीमान्सीमन्धर स्वामी चत्वार्यध्ययनानि च ॥ भावना च विमुक्तिश्च रतिकल्पमषापरम् । तथा विचित्रचर्या च तानि चैतानि नामतः । अप्येकया वाचनया मया तानि धृतानि च । उद्गीतानि च संघाय तत्तथाख्यानपूर्वकम् ॥ आचारांगस्य चूले । आद्यमध्ययनद्वयम् । . दशवकालिकस्यान्यदय संघेन योजितम् ॥ -परिशिष्ट पर्व, ७-१००, पृ.. २ आयारो तह आयार-चूला : भूमिका-आचार्य तुलसी, पृ० २०-२७ ३ जैनधर्म का मौलिक इतिहास, भाग २, पृ० ६१-१०६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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