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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
रखें, पर उसकी जो रचना हुई है वह चार चूलाओं की परिकल्पना से पृथक् नहीं है । अतः पाँचों चूलाओं के रचयिता एक ही हैं ।
समवायाङ्ग में चूलिका को छोड़कर आचारांग सूत्रकृताङ्ग और स्थानाङ्ग के सत्तावन अध्ययन बताये हैं। वे इस प्रकार हैं-सूत्रकृताङ्ग के तेईस अध्ययन, स्थानाङ्ग के दस अध्ययन, आचारांग के नौ अध्ययन, आचारचुला के पन्द्रह अध्ययन (इसमें चतुर्थ चूला के सोलहवें अध्ययन को छोड़कर शेष तीन चूलाओं के पन्द्रह अध्ययन ) इस तरह सत्तावन अध्ययन होते हैं । "
अभयदेवसूरि ने वृत्ति में इस बात को स्पष्ट नहीं किया है कि विमुक्ति नामक चतुर्थ चूला का वर्जन किस आधार पर किया है। सूत्र में जो सत्तावन की संख्या आई है उसकी संख्या पूर्ति के लिए विमुक्ति अध्ययन का वर्जन किया है या अन्य किसी कारण से ?
विज्ञों ने प्रस्तुत प्रश्न के समाधानार्थ यह कल्पना की है कि आचारांग से सीधा सम्बन्ध प्रथम तीन चूलिकाओं ( १५ अध्ययनों) का है । पहली दो चूलिकाओं का सम्बन्ध आचार से है और तीसरी चूलिका ( १५ अध्ययन ) का सम्बन्ध नौवें अध्ययन में जो महावीर की साधना वर्णित है, उससे है। किन्तु विमुक्ति का सीधा सम्बन्ध न होने से इसमें न लिया हो ।
आचारांग चूर्णि में एक नवीन बात आई है। उसमें लिखा है कि स्थूलभद्र की बहिन साध्वी यक्षा महाविदेह क्षेत्र में गई थी। जब वह भगवान सीमंधर स्वामी के दर्शन कर लौटने लगी तब भगवान ने उसे (१) भावना और (२) विमुक्ति नामक ये दो अध्ययन दिये। 3
१ तिन्हं गणिपिडगाणं आयारचूलियावज्जाणं सत्तावन्नं अज्झयणा पण्णत्ता तं जहाआयारे, सूयगडे, ठाणे । - समवायांग, समवाय ७७, सूत्र १ सर्वान्तिमध्ययनं विमुक्त्यमि
२ आचारस्य श्रुतस्कन्धद्वयरूपस्य प्रथमांगस्य चुलिका 2. धानमाचारचूलिका तद् वर्जानाम् ...
३ सिरिओ पव्वइतो अग्मत्तट्ठेणं कालगतो महाविदेहे वि अज्झयणाणि भावणा विमोती य आणिताणि ।
- समवायांग वृत्ति, पत्र ६९ य पुच्छिका गता अज्जा दो
- आवश्यक चूर्ण, पृ० १८८