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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन आचार सम्बन्धी नियमों का संकलन और उन नियमों के अतिक्रमण करने पर प्रायश्चित--इन दोनों को व्यवस्थित रूप देने वाले छेदसूत्र के रचयिता भद्रबाहु स्वामी होने चाहिए। . निशीथ को श्वेताम्बर साहित्य में कालिक सूत्र माना है। नन्दी के अनुसार वह अनंगप्रविष्ट की कोटि में आता है। चार चूलाओं को आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के रूप में मान्यता प्रदान की गई है और वह अंग प्रविष्ट की कोटि में है। गोम्मटसार में निशीथ की परिगणना आरातीय आचार्य कृत चौदह अंगबाह्य सूत्रों में की है।' समवायाङ्ग और नन्दी' में आचारांग के पच्चीस अध्ययन बताये हैं। यह संख्या आचारांग के नौ अध्ययनों के साथ चार आचार चूलाओं के सोलह अध्ययन मिलाने से ही सम्पन्न होती है। सारांश यह है कि नन्दीसूत्र की रचना तक निशीथ की रचना एक स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में रही और उसके पश्चात् उसे आचारांग की चूला के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। आचारांग नियुक्ति के पूर्व यह मान्यता स्थिर हो चुकी थी। एतदर्थ ही नियुक्तिकार ने पद-परिमाण की दृष्टि से आचारांग को बहु-बहुतर माना है।' आचारांग वृत्ति में आचार्य शीलाङ्क ने लिखा है कि चार चूलाओं का योग करने पर आचारांग का पद-परिमाण 'बहु' होता है और निशीथ नामक पाँचवीं चला का योग करने पर उसका पदपरिमाण 'बहुतर' हो जाता है। इस समय निशीथ का समावेश छेदसूत्रों में किया गया है। यह विभाग भी नन्दी की रचना के पश्चात् हुआ है। निशीथ को आज भले ही हम स्वतंत्र ग्रन्थ मानकर छेदसूत्रों के अन्तर्गत १ नन्दीसूत्र ७७ २ नन्दीसूत्र:५० ३ गोम्मटसार ३६६-३६७ ४ आयारस्स णं भगवओ सचूलियायस्स पणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता । -समवायांग, समवाय २५, सूत्र ५ ५ पणवीसं अज्झययणा । -नन्दीसूत्र ८० ६ हबइ य संपचचूलो बहुबहुतरओ पयग्गेणं। -आचारांग नियुक्ति, गा० ११ ७ तत्र चतुश्चूलिकात्मक द्वितीयश्रुतस्कन्धप्रक्षेपाद् बहुः निशीथाख्यपञ्चमचूलिकाप्रक्षेपाद बहुतरः। -आचारांग वृत्ति, पत्र ६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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