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________________ ५२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा निर्यूहण-स्थल आचारांग अध्ययन २ 두 उद्दशक ५ २ ४ ५ ५ ६ ७ १ ६ २-४ प्रत्याख्यान पूर्व के तृतीय वस्तु का आचार नामक बीसवाँ प्राभृत १-७ निर्यूढ अध्ययन - आचारचूला अध्ययन १, २, ५, ६, ७ १, २, ५, ६, ७ ३ ४ ८१४ १५ १६ आचार-प्रकल्प (निशीथ ) aria नियुक्ति में केवल निर्यू हण स्थल के अध्ययन और उद्देशकों का संकेत किया है। कहीं-कहीं पर चूर्णिकार और वृत्तिकार ने निर्यूहण सूत्रों का भी संकेत किया है । १ चूर्णि के अनुसार आचार-चूला के १, २, ३, ४, ५, ६, और ७ के निर्यूहण सूत्र इस प्रकार हैं- जमिण विरूवरूवेहि सत्थेहि लोगस्स कम्मसमारंभा कज्जति तं जहा- अप्पणो से पुत्ताणं धूयाणं... --अध्य० २, उ० ५ सूत्र १०४ Hataji वा परिण्णाय - अध्य० २, ३०५ सूत्र १०८ -अ०२, उ० ५ सूत्र ११२ त्यं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछ उग्गहं च कडासणं तं भिक्खु, उवसंकमित्तु गाहावई बूया -- आवसंतो ! समणा अहं खलु तव अट्ठाए असणं वा (४) वत्थं वा पडिम्यहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाई भूयाणं जीवाई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं आच्छेज्जं अणिसट्ठे अभिहडं आहट्ट. चेतेमि आवसहं वा समुसिणोमि -अ० ६, उ० २१, सूत्र २, पृ० ८०-८१ गामाणुगामं इज्ज माणस्स --- -४०५, उ० ४, सूत्र ६२, पृ० ५६ तद्दिट्ठीए.. -अ०५, ०४, सूत्र ६६, १० ६० -अ०५, उ० ४, सूत्र ६६ ...पलीवाहरे पासिय पाणे गच्छेज्जा से अभिवकममाणे ...... अ०५, ३० ४, सूत्र ७० पाणं पडी दाहिणं उदीणं आइक्वे विभए किट्ठे - अ० ६, उ०५, सूत्र १०१ २ वृत्ति के अनुसार - सव्वामगंधं परिणाय णिरामगंधी परिव्वए आदिस्समाणे कय विक्कए अ० २,३०५, सूत्र १०८ free veerमेज्जा चिट्ठेज्ज वा निसीएज्ज वा तुर्याट्टज्ज वा सुसानंसि वा '''' ( यावद् बहिया विहरिज्जा) तं भिक्खु उवसंकमित्तु गाहावती बूया - आउसंतो
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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