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________________ * 768 जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा : परिशिष्ट D. जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण' ग्रन्थ को पढ़कर मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि जैनदर्शन के सर्वांगीण अध्ययन के लिए जैसे प्रतिनिधि ग्रन्थ की आवश्यकता थी, सचमुच उसकी पूर्ति हो गई है। जैनदर्शन से सम्बन्धित सभी तात्विक विषयों पर जितनी स्पष्टता एवं सरलता के साथ लिखा गया है वह अतीव प्रशंसनीय है। -सौभाग्य मुनि 'कुमुद प्रबुद्ध चिन्तक, प्रखर मनीषी, मौलिक प्रतिभा के आगार। श्री देवेन्द्र मुनि जी के श्रम का, करता हैं मैं सत्कार / / अहा | जैन दर्शन का लेखक ने, विश्लेषण और स्वरूप / पाँच खण्ड में प्रस्तुत करके, कर दिखलाया कार्य अनूप / जो कुछ लिखा गया वह, पल्लवग्राही नहीं, अपितु गंभीर / तर्क-पुरस्सर, विशद विवेचन, पंक्ति-पंक्ति में अमृत क्षीर // जब भी देखा मैंने उनको, प्रायः लिखते रहते हैं। . चिन्तन की पावन धारा में, प्रायः बहते रहते हैं। स्थानकवासी श्रमण वृन्द में, सर्वश्रेष्ठ लेखक देवेन्द्र / उक्त तथ्य में सत्य सर्वथा, स्पष्ट कह रहा मुनि 'महेन्द्र'॥ -मुनि महेन्द्र कुमार 'कमल' D कल्पसूत्र प्रस्तुत समीक्ष्य प्रन्थ में सम्पादक महोदय ने कई शोधात्मक सामग्रियों का उद्घाटन किया है, जो अपने आप में निश्चय ही स्तुत्य हैं। प्रस्तावना के अन्तर्गत ऐतिहासिक अध्ययन की सूक्ष्मता दृष्टिगोचर होती है और साथ ही विपुल ज्ञान-भण्डार का दस्तावेज भी प्राप्त होता है, जो गंभीरता के द्योतक है। भगवान महावीर के सम्पूर्ण जीवन सामग्रियों के साथ ही साथ भगवान पार्श्वनाथ, भगवान अरिष्टनेमि, भगवान ऋषभदेव आदि के सम्बन्ध में भी पुनर्विचार किया गया है। स्थविरावली एवं समाचारी के सम्बन्ध में भी सम्यक् प्रकाश डाला है। संक्षिप्त पारिभाषिक शब्दकोष का संग्रह उपादेय है। संक्षेप में यह ग्रन्थ शोधित्सुकों एवं साधारण पाठकों के लिए भी उपयोगी एवं संग्रहणीय है। पुस्तक की छपाई साफ एवं मढाई बहुत ही सुन्दर है।. . -श्रमण, दिसम्बर 1966
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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