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________________ मत-सम्मत ७६७ बात कहने में मुनिजी निपुण हैं। प्रमाण और परिभाषाओं को न छोड़ते हुए भी मुनि जी ने एक तटस्थ वैज्ञानिक की भांति जैनदर्शन की वैश्विक महत्ता को उजागर किया है। साम्प्रदायिक अथवा पांथिक अभिनिवेश अथवा उत्तेजना से बचकर सहजभाव से, सामान्य जिज्ञासुओं के लिए इस ग्रन्थ का प्रणयन सचमुच अपार धीरज का परिणाम कहा जायेगा। ...""मुनि जी मानव-हृदय के सरस संस्पशित व्यक्ति है, उनका मानस काव्य की कमनीयता से समलंकृत है और साधना उनकी आध्यात्मिक है। काव्य-साधना एवं अभिव्यक्ति की सरलता ने उनमें एक यौगिक संगम निर्मित कर दिया है। ऐसे समर्थ व्यक्तित्व से अभी भारतीय दर्शन एवं संस्कृति को बहुत आशाएँ हैं। -श्रमण, फरवरी १९७६ 0 "जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण" ग्रन्थ को पढ़कर मुझे हार्दिक आल्लाद हुआ। जैनदर्शन पर अनेक ग्रन्थ निकले हैं किन्तु इस ग्रन्थ की अनूठी विशेषता है। भाषा के लालित्य के साथ विषय की जिस गहराई से विवेचना की है उसमें मुनिजी का गम्भीर पाण्डित्य झलक रहा है। ऐसे अद्भुत ग्रन्थरत्न का प्रत्येक भाषा में अनुवाद होना चाहिए और मेरा नम्र निवेदन है कि ऐसे ग्रन्थ पर मुनि श्री को डी० लिट्. की उपाधि से अलंकृत करना चाहिए। ग्रन्थ शोधपूर्ण, जीवनोपयोगी, जीवन को नया मोड़ देने वाला, जादू सा असर पैदा करने वाला है। -महासती उज्ज्वलकुमारी, अहमदनगर " जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण देख नाच उठा है सारा जन-मन सरस्वती भी नहीं कर सकती वर्णन गुरु पुष्कर के मुनि देवेन्द्र से वसुधा भी हो गई धन-धन कलम कलाधर, तुम्हें हमारा शत-शत हो वन्दन पी-एच० डी० की उपाधि मिले यही चाहता जन-मन उज्ज्वल कीति दश दिशा में फैले यही भावना क्षण-क्षण अनेकों के पथदर्शक बने आपका आदर्श जीवन दिन-दूनी रात-चौगुनी प्रगति करो अर्हन् ! पाप-ताप-संताप मिटे जो करे आपके दर्शन ऐसे भाई देवेन्द्र मुनि का बार-बार अभिनन्दन !! -जैनसाध्वी धर्मशाला एम० ए०, पी-एच० डी०, साहित्यरत्न
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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