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________________ ७०४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा : परिशिष्ट पौषधोपवास-पौषध का अर्थ पर्व है । पर्व में जो उपवास किया जाता है वह पौषधोपवास है । उसमें सावध अनुष्ठान का परित्याग होता है और आत्मस्थ होकर साधना की जाती है। बन्ध-मिथ्यात्व आदि कारणों द्वारा काजल से भरी हुई डिबिया के समान पौद्गलिक द्रव्य से परिव्याप्त लोक में कर्मयोग्य पुद्गल वर्गणाओं का आत्मा के साथ नीर-क्षीर अथवा अग्नि और लोहपिंड की भांति एक दूसरे में अनुप्रवेश-अभेदात्मक एक क्षेत्रावगाह रूप सम्बन्ध होने को बंध कहते हैं । अथवा आत्मा और कर्म परमाणुओं के सम्बन्ध विशेष को बंध कहते हैं। अथवा अभिनव नवीन कर्मों के ग्रहण को बंध कहते हैं। बहिरात्मा-देह को आत्मा मानने वाला बाल, अज्ञानी व मिथ्यादृष्टि बहिरात्मा है। बाहुबलि-भगवान ऋषभदेव के द्वितीय पूत्र। . ब्रह्मचर्य-ब्रह्म-आत्मा, ब्रह्म-विद्या, ब्रह्म--अध्ययन आदि में रमण करना और ब्रह्म-वीर्य का रक्षण करना। माह्मी-यह भगवान ऋषभदेव की पुत्री थी जिसने सर्वप्रथम लिपिविद्या, का श्रीगणेश किया। उसी के नाम से ब्राह्मी लिपि प्रचलित हुई है। भरत-भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र, जो चक्रवर्ती थे। भारण्डपक्षी-जिसके एक शरीर में दो जीव, दो ग्रीवा और तीन पैर होते हैं । जब एक जीव सोता है, तो दूसरा जागता है। भवनपति-भवनों में रहने वाले देवों को भवनपति कहते हैं। भव्य-जो मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं या मोक्ष पाने की योग्यता रखते है, जिनमें सम्यग्दर्शन आदि भाव प्रकट होने की योग्यता है। भाव....जीव, अजीव द्रव्यों का अपने-अपने स्वभाव रूप से परिणमन होना। भावकर्मजीव के मिथ्यात्व आदि वैभाविक स्वरूप जिनके निमित्त से कर्म पुद्गल कर्म रूप हो जाते हैं। .भावप्राण-ज्ञान, दर्शन, चेतना आदि जीव के गुण । " . भावनिक्षप--विवक्षित पर्याय युक्त वस्तु को उसके नाम से कहना। जैसे राज्यनिष्ठ राजा को राजा कहना । भावलेश्या-योग और संक्लेश से अनुगत आत्मा का परिणाम विशेष । संक्लेश का मूल कषायोदय है अतः कषायोदय से अनुरंजित योग प्रवृत्ति भावलेश्या है। मोहकर्म के उदय या क्षयोपशम या उपशम अथवा क्षय से होने वाली जीव के प्रदेशों की चंचलता भावलेश्या है। भावभुत-इन्द्रिय और मन के निमित्त से उत्पन्न होने वाला जो कि
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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