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... पारिभाषिक शब्द कोश
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....दर्शन (उपयोग)-सामान्य को प्रधान और विशेष को गौण कर जो पदार्थ का ग्रहण होता है, वह दर्शन उपयोग है।
वर्शनमोह-जो तत्त्वार्थ श्रद्धान रूप दर्शन को मोहित करता है, नहीं होने देता अथवा बाधक बनता है, वह दर्शनमोह है।
वर्शनाचार-निःशंकितादि आठ अंग युक्त सम्यक्त्व का परिपालन करना दर्शनाचार है।
वर्शनावरण-दर्शन गुण के आवरक कर्म को दर्शनावरण कहते हैं।
बशवकालिक-मनक नामक पुत्र के हितार्थ आचार्य शय्यम्भव के द्वारा अकाल में रचे गये दस अध्ययन स्वरूप रात को दशकालिक कहा जाता है।
दान-अपने और दूसरे के अनुग्रह के लिए जो घन आदि का त्याग किया जाता है, वह दान है।
दानान्तराय--जिसके उदय से देने योग्य वस्तु के होने पर और ग्राहक पात्र 'विशेष के उपस्थित रहने पर तथा दान के फल को जानते हुए भी देने के लिए उत्साह नहीं होता है, वह दानान्तराय है ।
दीक्षा-समस्त आरम्भ परिग्रह के परित्याग को और व्रत ग्रहण को दीक्षा कहा है।
दुःख----अन्तरंग में असाताबेदनीय कर्म का उदय होने पर तथा बाह्य द्रव्यादि के परिपाक का निमित्त मिलने से जो चित्त में परिताप परिणाम होता है उसे दुःख कहते हैं।
दुःखविपाक---जिनमें दुःख के विषाक से युक्त जीवों के नगर, उद्यान, वन खण्ड, चैत्य, समवसरण, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक और पारलौकिक ऋद्धि विशेष, सरकगतिगमन का वर्णन है, वह दुःखविपाक है।
दृष्टिवाद-जिस श्रुत में सभी पदार्थों की प्ररूपणा की जाती है वह दृष्टिवाद है।
देवाधिदेव-जो अरिहन्त भगवान केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि अनन्त चतुष्टय के धारक हैं, वे देवाधिदेव हैं।
देशचारित्र---हिंसादि पापों से की जाने वाली एकदेश विरति का नाम देशचारित्र है।
बेशना-छह द्रव्य, सात तत्त्व, पाँच अस्तिकाय और नौ पदार्थों के उपदेश को देशना कहते हैं। .. बेश-विरति-ग्राम-नगर आदि के जितने देश का प्रमाण निश्चित किया गया है, उसका नाम देश है; उसके बाहर गमन का परित्याग करना, देशविरति है। ' ... देशावकाशिक बत-दिग्वत में जो दिशा का प्रमाण किया गया है उसमें प्रतिदिन संक्षेप करना देशावकाशिक व्रत है।