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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा : परिशिष्ट
द्रव्य-जो अपने स्वभाव को न छोड़ता हुआ उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से सम्बद्ध रहकर गुण और पर्याय से सहित होता है, वह द्रव्य है। जो गुणों का आश्रय होता है, वह द्रव्य है।
द्रव्यकर्म-ज्ञानाबरणादि रूप से परिणत पुद्गल पिण्ड को द्रव्यकर्म कहा जाता है।
द्रव्यनिक्षेप-जो भावी परिणामविशेष की प्राप्ति के प्रति अभिमुख हो---- उसकी योग्यता को धारण करता हो, वह द्रव्यनिक्षेप है।
द्रव्यमन-पुद्गल विपाकी नामकर्म के उदय से जो पुद्गल मन रूप परिणत होते हैं उन्हें द्रव्यमन कहा जाता है।
द्रव्यलेश्या-पुद्गल विपाकी वर्ण नामकर्म के उदय से जो लेश्या---शरीरगतवर्ण होता है वह द्रव्यलेश्या है। कृष्ण, नील व पीतादि द्रव्यों को ही द्रव्यलेश्या कहा जाता है।
द्रव्याथिकनय--जो विविध पर्यायों को वर्तमान में प्राप्त करता है, भविष्य में प्राप्त करेगा और जिसने भूतकाल में प्राप्त किया है उसका नाम द्रव्य है। इस द्रव्य को विषय करने वाला नय द्रव्याथिकनय है।
द्रव्याखव---ज्ञानावरणादि के योग्य पुद्गलों के आगमन को द्रव्यास्रव कहते हैं।
द्रव्येन्द्रिय-निवृत्ति और उपकरण को द्रव्येन्द्रिय कहा जाता है। पुद्गलों के द्वारा जो बाहरी आकार की रचना होती है उसे तथा कदम्ब पुष्प आदि के आकार से युक्त उपकरण-ज्ञान के साधनको द्रव्येन्द्रिय कहा है।
द्रोणपथ-जो पथ नगर, जलमार्ग, स्थलमार्ग दोनों से संयुक्त होता है, वह द्रोणपथ है।
द्वीपकुमार-जो भवनवासी देव कन्धों, बाहुओं के अग्र भाग और हाथों में अधिक सुन्दर, वर्ण से श्याम एवं सिंह के चिह्न से युक्त होते हैं वे द्वीपकुमार कहलाते हैं।
.....धनुष-छयानव अंगुल या चार हाथ प्रमाण माप को धनुष कहते हैं।
धर्म-मोह और क्षोभ से रहित आत्मा का शुद्ध परिणाम धर्म है।
धर्मद्रव्य--वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श से रहित, गमन करते हुए जीव एवं पुद्गलों की गमन क्रिया में सहायता देने वाला धर्म द्रव्य है।
नारक-जिसको नरक गति नामकर्म का उदय हो अथवा जीवों को क्लेश पहुंचाए वह नारक है। दूसरे शब्दों में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से जो स्वयं तथा परस्पर में प्रीति को न प्राप्त करते हों।
नामनिक्षेप-नाम के अनुसार वस्तु में गुण न होने पर भी व्यवहार के लिए जो पुरुष के प्रयत्न से नामकरण किया जाता है वह नामनिक्षेप है।