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________________ पारिभाषिक शब्द कोश ६६५ (छ) छपस्थ----ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्म का नाम छप है, इस छध में जो स्थित रहते हैं, वह छमस्थ हैं । छेद-संयम की विशुद्धि हेतु दोष लगने पर उसका परिष्कार करने का नाम छेद है। छेदोपस्थापन-जिस चारित्र में पूर्व पर्याय को छेदकर उसे खण्डित करमहाव्रतों में स्थापित किया जाता है, वह छेदोपस्थापन चारित्र है। जङ्घाचारण-एक लब्धि विशेष है जिससे आकाश में गमन किया जाता है। ..जम्बूदीप----मनुष्य लोक के ठीक मध्य में एक लाख योजन विस्तार वाला समान गोल आकृति वाला जम्बूद्वीप है। जम्बूदीपप्रज्ञप्ति-जिसमें जम्बूद्वीपस्थ भोगभूमि और कर्मभूमि में उत्पन्न हुए विविध प्रकार के मनुष्य, तिर्यञ्च जीवों का; तथा पर्वत, ग्रह, नदी, वेदिका, वर्ष, आवास, आदि का वर्णन हो। जरायु–गर्भ में प्राणी के शरीर को आच्छादित करने वाला जो विस्तृत रुधिर और मांस रहता है वह जरायु है । जो जरायु में उत्पन्न होते हैं वे जरायुज कहलाते हैं। जिन-जिन्होंने क्रोधादि कषायों को जीत लिया है, वे जिम हैं। जिनकल्पिक राग-द्वेष एवं मोह से रहित होकर उपसर्ग व परीषहों को सहन करने वाले जो श्रमण जिनदेव के सदृश कल्प का पालन करते हैं, वे जिन कल्पिक हैं। जीव-जो चैतन्य परिणामस्वरूप उपयोग से विशेषता को प्राप्त हैं, वे जीव हैं। वह द्रव्य भाव कर्मों के आस्रव आदि का स्वामी, कर्मों का कर्ता, भोक्ता, प्राप्त शरीर के प्रमाण, कर्म के साथ होने वाले एकत्व परिणाम की अपेक्षा मूर्त और कर्म से संयुक्त है। जुगुप्सा-जिस कर्म के उदय से अपने दोषों का संवरण और पर के दोषों का प्रकाशन किया जाता है, बह जुगुप्सा नोकषाय है। ज्ञाताधर्मकथा-जिस अंग धत में उदाहरणभूत पुरुषों; और उनके नगर, उद्यान एवं चैत्य आदि का कथन किया जाता है, वह शाताधर्मकथा है। ज्ञानावरण-ज्ञान के आवरक कर्म को ज्ञानावरण कहते हैं। By: तप---जो अष्ट प्रकार की कर्म ग्रन्थि को संतप्त करता है, नष्ट करता है वह तप है। ४ ताजिस ज्ञान के द्वारा, व्याप्ति से साध्य-साधन रूप अर्थों के सम्बन्ध का निश्चय करके अनुमान में प्रवृत्ति होती है, वह तर्क है। ..
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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