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पारिभाषिक शब्द कोश
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ईहा अवग्रह से जाने गये पदार्थ को विशेष जानने की इच्छा ईहा है। ऊहा, अपोहा, मार्गणा, ये ईहा के पर्यायवाची हैं ।
(उ)
उच्च गोत्र-जिसके उदय से जीव उत्तम जाति, कुल, बल, रूप, तप, ऐश्वर्य और श्रुत आदि के द्वारा जगत में आदर-सत्कार को प्राप्त करता है, वह उच्च गोत्र है ।
उच्छवास - संख्यात आवली प्रमाण काल को उच्छवास कहते हैं । उत्तरगुण-मूलगुणों से भिन्न पिण्डशुद्धि आदि उत्तरगुण माने जाते हैं । उत्तराध्ययन-क्रम की दृष्टि से आचारांग के उत्तर (बाद) में पढ़ा जाने वाला
आगम ।
उत्पाद पूर्व- जिस पूर्व श्रुत में काल, पुद्गल और जीव नय की अपेक्षा से होने वाली उत्पत्ति का वर्णन किया जाता है,
आदि की पर्यायार्थिक
वह उत्पादपूर्व है ।
उत्सर्ग - बाल, वृद्ध आदि श्रमण के द्वारा भी मूलभूत संयम का विनाश न हो, प्रस्तुत दृष्टि से जो शुद्ध आत्म-तत्त्व के साधनभूत अपने योग्य कठोर संयम का आचरण करता है, वह उत्सर्ग मार्ग है ।
उत्सर्पिणी- जिस काल में जीवों के आयु, शरीर की ऊँचाई और विभूति आदि की उत्तरोत्तर वृद्धि हो उसे उत्सर्पिणी कहते हैं ।
उत्सूत्र - तीर्थंकर या गणधरों ने जिसका उपदेश नहीं दिया हो, ऐसे तत्त्व का अपनी कल्पना से अर्थ करना उत्सूत्र है, क्योंकि इस प्रकार का कथन सिद्धान्त के बहिर्भूत है ।
उत्सेवांगुल - आठ यव मध्यों का एक उत्सेधांगुल होता है ।
उदय-द्रव्यादि का निमित्त पाकर जो कर्म का फल प्राप्त होता है, वह
उदय है।
उदीरणा -- उदय काल को प्राप्त नहीं हुए कर्मों का आत्मा के अध्यवसायविशेष अर्थात् प्रयत्नविशेष से नियत समय से पूर्व उदयहेतु उदयावली में प्रविष्ट करना, अवस्थित करना या नियत समय से पूर्व कर्म का उदय में आना, अथवा अनुद्यकाल को प्राप्त कर्मों को फलोदय की स्थिति में ला देना ।
उन्मान - जिसके द्वारा ऊपर उठाकर तगर आदि औषधि तौले जाते हैं, ऐसी तराजू को उन्मान कहा जाता है ।
•. उपचय - गृहीत कर्म पुद्गलों के अबाधा काल को छोड़कर आगे ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का स्वरूप से निसिञ्चन करना, क्षेपण करना उपचय है ।
उपचार विनय - आचार्य आदि के सन्मुख खड़ा होना, सन्मुख जाना, हाथ जोड़कर प्रणाम करना आदि उपचार विनय है ।