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________________ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा परिशिष्ट आलय - मन, वचन और काया की क्रिया रूप जो योग है, वह आस्रव है । अथवा जिससे कर्म प्रवाह आता है वे मिध्यात्व, अव्रत आदि आस्रव हैं । आहार -- शरीर नामकर्म के उदय से देह, वचन और द्रव्यमन रूप बनने योग्य नोकर्मवर्मणा का जो ग्रहण होता है, उसे आहार कहते हैं। दूसरे शब्दों में तीन शरीर और छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों के ग्रहण को आहार कहते हैं। आहार पर्याप्ति-बाह्य आहार पुद्गलों को ग्रहण करके खल भाग, रस भाग में परिणमन करने की जीव की शक्ति-विशेष की परिपूर्णता । आहारक शरीर चतुर्दशपूर्वधर मुनि विशिष्ट कार्य हेतु, जैसे किसी भी वस्तु में सन्देह समुत्पन्न हो जाए या तीर्थंकर के ऋद्धि दर्शन की इच्छा हो जाए तब आहारकवर्गणा द्वारा जो स्वहस्तप्रमाण पुतला (शरीर) बनाते हैं वह आहारक शरीर है । ६८६ (इ) इङ्गिनी- अनशन-आगम विहित एक क्रिया-विशेष का नाम इंगिनी है। उसे जानकर जीव-जन्तु रहित एकान्त स्वीकार करने वाला साधक आयु की हानि को स्थान में रहता हुआ चारों प्रकार के आहार का परित्याग करता है। वह छाया से उष्ण प्रदेश में व उष्ण से छाया प्रदेश में संक्रमण करता हुआ सावधान रहकर एवं ध्यान में रत रहकर प्राणों का परित्याग करता है, वह इंगिनी अनशन है । इत्वर अनशन --- परिमित समय तक के लिए जो त्याग किया जाता है, वह इत्वर अनशन है। भगवान ऋषभदेव के समय में उत्कृष्ट १२ महिने से अधिक ( सम्वत्सर) अनशन तप था। भगवान अजित से लेकर भगवान पार्श्व तक उत्कृष्ट आठ महिने का अनशन महावीर के समय छह माह का अनशन था । इन्द्र - अन्य देवों में नहीं पाई जाने वाली असाधारण अणिमा, महिमा आदि ऋद्धियों के धारक ऐसे देवाधिपति इन्द्र हैं । इन्द्रिय- परम ऐश्वर्य को प्राप्त करने इन्द्र जिसके द्वारा सुनता है, देखता है, सूंघता है, इन्द्रियाँ हैं। दूसरे शब्दों में, जो जीव को अर्थ की इन्द्रियाँ हैं । वाले आत्मा को इन्द्र कहा है। वह चखता है एवं स्पर्श करता है, वे उपलब्धि में निमित्त होती हैं, वे इन्द्रियसंयम-पाँचों इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति का अभाव इन्द्रियसंयम है। इभ्य -- जिसके पास संचित सुवर्ण रत्नादि की राशि से अन्तरित हाथी भी दृष्टिगोचर न हो, उस अतिधनवान पुरुष को इभ्य कहते हैं । (ई) ture क्रिया-ईर्ष्या का अर्थ योग है। एकमात्र उस योग के द्वारा जो कर्म आता है वह ईर्यापथ कर्म है। ईर्यापथ कर्म की कारणभूत क्रिया ईर्यापथ क्रिया है । ईर्ष्या समिति - दिन में सम्यक् प्रकार से निहारते हुए विवेकपूर्वक चलना ईर्या समिति है ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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