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जैन आगम साहित्य भारतीय साहित्य की एक अनमोल और महान उपलब्धि है। यह अक्षर-देह से जितना विराट और विशाल है उससे भी अधिक अर्थगरिमा के गौरव से मण्डित है। उस विराट आगम साहित्य का मन्थन कर नवनीत निकालना साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं है, यह गुरुतर कार्य तो आगम साहित्य का गहन अध्येता ही सुगम रीति से कर सकता है । हमें परम आह्लाद है कि सद्गुरुवर्य राजस्थानकेसरी, अध्यात्मयोगी, प्रसिद्ध वक्ता, उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज के सुशिष्य श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री ने प्रस्तुत ग्रन्थ रत्न तैयार किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में आगम साहित्य का महत्त्व, अंग, उपांग, मूल, छेद, पूर्व, प्रकीर्णक, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीकाएँ तथा दिगम्बर साहित्य और तुलनात्मक अध्ययन, सुभाषित, शब्द कोष आदि पर संक्षेप में सारपूर्ण परिचय प्रदान किया गया है। लेखक ने सागर को एक गागर में भरने जैसा श्रमसाध्य कार्य किया है जो बहुत ही स्तुत्य है, प्रशंसनीय है।
। आधुनिक युग में समय की कमी अत्यधिक अनुभव की जा रही है। कम से कम समय में व्यक्ति अधिक से अधिक जानना चाहता है, उनके लिए यह ग्रन्थ अतीव उपयोगी सिद्ध होगा और जिन्होंने आगम साहित्य का गहन अध्ययन किया है उनके लिए भी इस ग्रन्थ में बहुत कुछ नई सामग्री मिलेगी। मुनिश्री का शोध-प्रधान व समन्वयात्मक दृष्टिकोण सर्वत्र मुखरित हुआ है । खण्डन-मण्डन की प्रवृत्ति से मुनिश्री सदा दूर रहे हैं। यही कारण है कि आपश्री के साहित्य को जैन-अजैन सभी मूर्धन्य मनीषियों ने पसन्द ही नहीं किया अपितु मुक्त कण्ठ से उसकी प्रशंसा भी की है।
हमें परम प्रसन्नता है कि हम प्रस्तुत ग्रन्थ रत्न का प्रकाशन ऐसे सुनहरे अवसर पर करने जा रहे हैं जबकि समाज श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी का स्वर्ण-जयन्ती समारोह बिराट रूप से मनाने जा रहा है। श्रद्धेय सद्गुरुवर्य को आगम प्राणों से भी अधिक प्यारे रहे हैं अत: इस पावन-प्रसंग पर हम यह ग्रन्थ प्रकाशित कर अपने आपको धन्य अनुभव कर रहे हैं। राजस्थान केसरी अध्यात्मयोगी श्री पुष्कर मुनिजी अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन समिति की ओर से विराटकाय अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है जो अभिनन्दन ग्रन्थों की परम्परा में एक विशिष्ट अभिनन्दन ग्रन्थ होगा। साथ ही प्रस्तुत संस्थान से 'जैन कथाएँ' के पच्चीस भाग व श्रद्धेय सद्गुरुवर्य के प्रवचन साहित्य, निबन्ध साहित्य