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________________ ४. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा हासिक काल में हो चुका था। प्रज्ञापनासूत्र में अठारह लिपियों का उल्लेख मिलता है। विशेषावश्यक भाष्यवृति और त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र प्रभृति ग्रन्थों से स्पष्ट है कि भगवान् ऋषभदेव ने अपनी ज्येष्ठ पुत्री ब्राह्मी को अठारह लिपियां सिखलाई थीं । इसी कारण लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि पड़ा। भगवती आदि आगमों में मंगलाचरण के रूप में 'नमो बंभीए लिवीए" कहा गया है। भगवान् ऋषभ ने अपने बड़े पुत्र भरत को ७२ कलाएं सिखलाई थीं; जिनमें लेखन कला का प्रथम स्थान है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार चक्रवर्ती भरत ने काकिणी रत्न से अपना नाम ऋषभकूट पर्वत पर लिखा था। भगवान ऋषभ ने असि, मषि और कृषि ये तीन प्रकार के व्यापार चलाये। इस तरह लिपि, लेखन-कला और मषि ये तीन शब्द लेखन की परम्परा को कर्मयुग के आदिकाल में ले जाते हैं । नन्दीसूत्र में अक्षरश्रुत के जो तीन प्रकार के बतलाए हैं उनमें प्रथम संज्ञाक्षर है। जिसका अर्थ है अक्षर की आकृति विशेष-अ, आ आदि।' १ (क) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वृत्ति । , (ख) श्री कल्पसूत्र, सू० १६५ प्रज्ञापनासूत्र पद १। (क) विशेषावश्यक भाष्यवृत्ति १३२ । (ख) लेहं लिवीविहाणं जिणेण बंभीए दाहिण करेणं । -आवश्यक नियुक्ति गा० २१२ (ग) अष्टादश लिपिर्बाह्या अपसव्येन पाठिना। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र १२१९६३ (घ) बंभीए दाहिणहत्येण लेहो दाइतो। -आवश्यक चूणि पृष्ठ १५६ (ङ) आगम साहित्य में भारतीय समाज : पृ०३०१-३०३ ले० डाक्टर जगदीशचन्द्र जैन ऋषभदेव ने ही संभवतः लिपि-विद्या के लिए लिपि कौशल का उद्भावन किया। ऋषभदेव ने ही संभवतः ब्रह्म विद्या की शिक्षा के लिए उपयोगी ब्राह्मी लिपि का प्रचार किया था। -हिन्दी विश्वकोष, श्री नगेन्द्रनाथ बसु प्र० भा०पृ०६४ । ५. भगवती सूत्र-मंगलाचरण । ६... वासप्तति कला कलाकाण्डं, भरतं सोऽध्यजीगपत् । ब्रह्म ज्येष्ठाय पुत्राय ब्रूयादिति नयादि व ॥ -त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १२२६६० ७ जम्बूद्वीप० वृत्ति, ८ मन्दीसूत्र ३८ ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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