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६५२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा (१२०) भीतो भूतेहिं घिप्पइ। श२
भयाकुल व्यक्ति ही भूतों का शिकार होता है। (१२१) अणन्नविय गेण्हियव्वं । २३
दूसरे की कोई भी चीज हो, आशा लेकर ग्रहण करनी चाहिए। (१२२) एगे चरेज्ज धम्म । ।३ • • भले ही कोई साथ न दे, अकेले ही सद्धर्म का आचरण करना चाहिए। (१२३) विणओ वि तवो, तवो पि धम्मो । १३
विनय स्वयं एक तप है, और वह आभ्यंतर तप होने से श्रेष्ठ धर्म है। (१२४) बंभचेरं उत्तमतव-नियम-णाण-दसण-चरित्त-सम्मत्त-विणयमूलं । २।४
ब्रह्मचर्य उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्स्व और विनय
का मूल है। (१२५) दाणाणं चेव अभयदाणं।२।४
सब दानों में 'अभयवान' श्रेष्ठ है। (१२६) स एव भिक्खू, जो सुद्धचरति बंभचेरं । २।४
जो शुद्ध भाव से ब्रह्मचर्य पालन करता है, वस्तुतः वही मिन है। (१२७) समे य जे सव्वपाणभूतेसु से हु समणे । २१५
जो समस्त प्राणियों के प्रति समभाव रखता है, वस्तुतः वही श्रमण है। वशवकालिक (१२८) धम्मो मंगल मुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो।
देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो। १०१ धर्म श्रेष्ठ मंगल है। अहिंसा, संयम और तप-धर्म के तीन रूप हैं।
जिसका. मन (विश्वास) धर्म में स्थिर है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। (१२९) अच्छंदा जे न भुंजंति, न से चाइत्ति बुच्चइ । २२
जो पराधीनता के कारण विषयों का उपभोग नहीं कर पाते, उन्हें त्यागी नहीं
कहा जा सकता। (१३०) कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । २१५
कामनाओं को दूर करना ही दुःखों को दूर करना है। (१३१) वंतं इच्छसि आवेउ, सेयं ते मरणं भवे । २२७
बमन किए हुए (त्यक्त विषयों) को फिर से पीना (पाना चाहते हो ? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है।