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________________ आगम साहित्य के सुभाषित ६५१ (१०८) पाणवहो चंडो, रुद्दो, खुद्दो, अणारियो, निग्धिणो, निसंसो, महब्भयो" १११ प्राणवध (हिंसा) चण्ड है, रौद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, करुणा-रहित है, क्रूर है, महाभयंकर है। (१०६) उवणमंति मरणाधम्म अवित्तत्ता कामाणं । ११४ अच्छे से अच्छे सुखोपभोग करने वाले देवता और चक्रवर्ती आदि भी अन्त में कामभोगों से अतृप्त ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। (११०) देवा वि सइंदगा न तित्ति न तुर्द्वि उवलभंति । ११५ . देवता और इन्द्र भी न (भोगों से) कभी तुप्त होते हैं और न संतुष्ट । (१११) नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अस्थि सव्वजीवाणं सव्वलोए। १२५ समूचे संसार में परिग्रह के समान प्राणियों के लिए दूसरा कोई जाल एवं बन्धन नहीं है। (११२) अहिंसा तस-थावर-सब्वभूय खेमंकरी । २१ अहिंसा, अस और स्थावर (चर-अचर) सब प्राणियों का कुशल-क्षेम करने वाली है। (११३) सब्वपाणा न हीलियब्वा, न निदियव्वा । २।१ विश्व के किसी भी प्राणी की न अवहेलना करनी चाहिए, और न निन्दा । (११४) भगवती अहिंसा भीयाणं विव सरणं । १ जैसे भयाक्रान्त के लिए शरण की प्राप्ति हितकर है। प्राणियों के लिए वैसे ही, अपितु इससे भी विशिष्टतर भगवती अहिंसा हितकर है। (११५) तं सच्चं भगवं । २२ सत्य ही भगवान है। (११६) सच्चं 'लोगम्मि सारभूयं गंभीरतरं महासमुहाओ २२ संसार में 'सत्य' ही सार भूत है। सत्य महासमुद्र से भी अधिक गंभीर है। (११७) सच्चं च हियं च मियं च गाहणं च । २१२ ऐसा सत्य वचन बोलना चाहिए जो हित, मित और ग्राह्य हो। (११८) लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं । २२ मनुष्य लोभग्रस्त होकर झूठ बोलता है। (११९) भीतो अबितिज्जओ मणुस्सो। २२ भयभीत मनुष्य किसी का सहायक नहीं हो सकता।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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