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________________ आगम साहित्य के सुभाषित ६४६ (८९) चउब्विहे संजमे मणसंजमे, बइसंजमे, कायसंजमे, उवगरण संजमे । ४१२ संयम के चार प्रकार हैं-मन का संयम, वचन का संयम, शरीर का संयम और उपधि-सामग्री का संयम । (९०) चत्तारि अवायणिज्जा अविणीए, विगइपडिबद्ध, अविओसितपाडे, माई।४।३ चार व्यक्ति शास्त्राध्ययन के योग्य नहीं है-अविनीत, घटोरा, झगड़ालू और धूर्त । मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमथू । ६।३ वाचालता सत्य वचन का विधात करती है। (९२) इच्छालोभिते मुत्तिमग्गस्स पलिमंथू । ६।३ लोम मुक्तिमार्ग का बाधक है। (१३) गिलाणस्स अगिलाए वेयावच्चकरणयाए। अब्भूठेयव्वं भवति । रोगी की सेवा के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए । णो पाणभोयणस्स अतिमत्तं आहारए सया भवई ।। ब्रह्मचारी को कभी भी अधिक मात्रा में भोजन नहीं करना चाहिए। (९५) नो सिलोगाणुवाई, नो सातसोक्खपडिबद्धे यावि भवई। साधक कमी भी यश, प्रशंसा और दैहिक सुखों के पीछे पागल न बने । भगवती (९६) इह भविए वि नाणे परभविए वि नाणे, . तदुभयभविए वि नाणे । १ . ज्ञान का प्रकाश इस जन्म में रहता है, पर-जम्म में रहता है, और कभी दोनों जन्मों में भी रहता है। (९७) अप्पणा चेव उदीरेइ, अप्पणा चेव गरहइ, अप्पणा चेव संवरइ । ।३।। आत्मा स्वयं अपने द्वारा ही कर्मों की उदीरणा करता है, स्वयं अपने द्वारा ही उनकी गहा-आलोचना करता है, और अपने द्वारा ही कर्मों का संवर-आस्रव का निरोध करता है। (१८) आया णे अज्जो । सामाइए, आयाणे अज्जो! सामाइयस्स अट्ट । शर
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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