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________________ ६३६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा वादी आदि ३६३ मत-मतान्तरों का उल्लेख है । गणधरवाद और निह्नववाद -ये दर्शनशास्त्र की विविध दृष्टियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आजीविक, तापस, परिव्राजक, तत्क्षणिक और बोटिक आदि मत-मतान्तरों का भी विश्लेषण हुआ है । मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यव और केवलज्ञान के स्वरूप पर विस्तार से चिन्तन कर केवलज्ञान और केवलदर्शन के भेद और अभेद का युक्ति पुरस्सर विचार है । अनुमान आदि प्रमाणशास्त्र पर भी चिन्तन किया गया है। कर्मवाद जैनदर्शन का हृदय है। कर्म, कर्म का स्वभाव, कर्मस्थिति, रागादि की तीव्रता से कर्मबंध, कर्म का वैविध्य, समुद्घात, शैलेषी अवस्था, उपशम और क्षपकश्रेणी पर गहराई से चिन्तन किया गया है। ध्यान के संबंध में भी पर्याप्त विवेचन है। क्षिप्तचित्त और दीप्तचित्त श्रमणों की चिकित्सा की मनोवैज्ञानिक विधि प्रतिपादित की गई है। साथ ही क्षिप्तचित्त और दीप्तचित्त होने के कारणों पर भी चिन्तन किया गया है। भगवान ऋषभदेव मानव-समाज के आद्य निर्माता थे। उनके पवित्रचरित्र के माध्यम से आहार, शिल्प, कर्म, लेखन, मानदण्ड, इक्षुशास्त्र, उपासना, चिकित्सा, अर्थशास्त्र, यज्ञ, उत्सव, विवाह आदि अनेक सामाजिक विषयों पर भी चर्चा की गई है। मानव जाति को सात वर्णों एवं नौ वर्णान्तरों में विभक्त किया गया है। सार्थ, सार्थवाहों के प्रकार, छह प्रकार की आर्य जातियाँ, छह प्रकार के आर्य कुल आदि समाजशास्त्र से सम्बन्धित विषयों पर विश्लेषण किया गया है। साथ ही ग्राम, नगर, खेड, कर्वटक, मडम्ब, पत्तन, आकर, द्रोणमुख, निगम और राजधानी का स्वरूप भी चित्रित किया गया है। साढ़े पच्चीस आर्य देशों की राजधानी आदि का भी उल्लेख किया गया है। राजा, युवराज, महत्तर, अमात्य, कुमार, नियतिक, रूपयक्ष, आदि के स्वरूप और कार्यों पर भी चिन्तन किया गया है। साथ ही उस युग की संस्कृति और सभ्यता पर प्रकाश डालते हुए रत्न एवं धान्य की २४ जातियाँ बताई गई हैं। जांधिक आदि पांच प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख है। १७ प्रकार के धान्य भण्डारों का वर्णन है। दंड, विदंड, लाठी, विलट्री के अन्तर को स्पष्ट किया गया है। कुण्डल, गुण, मणि, तुडिय, तिसरिय, वालंभा, पलंबा, हार, अर्धहार, एकावली, कनकावली, मुक्तावली, रत्नावली, पट्ट, मुकुट आदि उस युग में प्रचलित नाना प्रकार के आभूषणों के स्वरूप को भी चित्रित किया गया है। उद्यान गृह, निर्याण गृह, अट्ट-अट्टालक, शून्य
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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