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तुलनात्मक अध्ययन
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गृह, भिन्नगृह, तृणगृह, गोगृह आदि अनेक प्रकार के गृहों का, कोष्ठागार, भांडागार, पानागार, क्षीण गृह, गजशाला, मानस शाला आदि के स्वरूप पर भी विचार किया गया है। इस प्रकार आचारशास्त्र, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, नागरिकशास्त्र, मनोविज्ञान आदि पर आगम और उसमें व्याख्या साहित्य में प्रचुर सामग्री है।
आगम साहित्य का विषय की दृष्टि से ही नहीं किन्तु साहित्यिक दृष्टि से भी प्रभूत महत्व है । आगमों में विविध छंदों का प्रयोग हुआ है । उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा, श्लेष, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं पर जीव को पतङ्ग, विषयों को दीपक और आसक्ति को आलोक की उपमा प्रदान की है। आगम साहित्य में गद्य और पद्य का मिश्रण भी पाया जाता है। यद्यपि गद्य और पद्य का स्वतन्त्र अस्तित्व है, किन्तु वे दोनों समान रूप से विषय को विकसित और पल्लवित करते हैं। प्रस्तुत प्रणाली ही आगे चलकर चम्पू काव्य या गद्य-पद्यात्मक कथा काव्य के विकास का मूल स्रोत बनी। कथाओं के विकास के सम्पूर्ण रूप भी आगम साहित्य में मिलते हैं। वस्तु, पात्र, कथोपकथन, चरित्र-चित्रण, प्रभृति तत्त्व आगम व व्याख्या साहित्य में पाये जाते हैं। तर्कप्रधान दर्शन शैली का विकास भी आगम साहित्य में है। जीवन और जगत के विविध अनुभवों की जानकारी का यह साहित्य अनुपम कोश है।
दिगम्बराचार्यों ने श्वेताम्बरों के आगमों को प्रामाणिक नहीं माना। श्वेताम्बर दृष्टि से केवल दृष्टिवाद नामक बारहवाँ अंग ही विच्छिन्न हुआ जबकि दिगम्बर दृष्टि से सम्पूर्ण आगम साहित्य ही लुप्त हो गया। केवल दृष्टिवाद का कुछ अंश अवशेष रहा जिसके आधार से षट्खण्डागम की रचना हुई और उसी मूल आधार से अन्य अनेक मेधावी आचार्यों ने उन विषयों पर ग्रंथ लिखे । आत्मा और कर्म सम्बन्धी गहन चर्चा के कारण ये ग्रन्थ बहुत ही जटिल हो गये। श्वेताम्बर आगम साहित्य के समान विविध विषयों की विशद चर्चाएँ दिगम्बर साहित्य में नहीं है। श्वेताम्बर और दिगम्बर आगम को समझने के लिए दोनों का तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है।
दोनों ही परम्पराओं में अनेक प्रतिभासम्पन्न ज्योतिर्धर आचार्य हुए, जिन्होंने आगम साहित्य के एक-एक विषय को लेकर विपुल साहित्य का सृजन किया। उस साहित्य में उन आचार्यों का प्रकाण्ड पांडित्य और अनेकान्त दृष्टि स्पष्ट रूप से झलक रही है । आवश्यकता है उस विराट साहित्य