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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
कही गयी है । उत्तराध्ययन के बारहवें अध्ययन हरिकेशबल की कथावस्तु मातङ्ग जातक में मिलती है ।" तेरहवें अध्ययन चित्तसम्भूतर की कथावस्तु चित्तसम्भूत जातक में प्राप्त होती है। चौदहवें अध्ययन इषुकार की कथा हरिथपाल जातक व महाभारत के शान्तिपर्व' में उपलब्ध होती है । उत्तराध्ययन के नौवें अध्ययन 'नमि प्रव्रज्या' की आंशिक तुलना महाजन जातक तथा महाभारत के शान्तिपर्व से की जा सकती है ।
इस प्रकार महावीर के कथा साहित्य का अनुशीलन - परिशीलन करने से स्पष्ट परिज्ञात होता है कि ये कथाएँ आदिकाल से ही एक सम्प्रदाय से दूसरे सम्प्रदाय में, एक देश से दूसरे देश में यात्रा करती रही हैं। कहानियों की यह विश्व यात्रा उनके शाश्वत और सुन्दर रूप की साक्षी दे रही है, जिस पर सदा ही जनमानस मुग्ध होता रहा है ।
उपर्युक्त पंक्तियों में संक्षेप में तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । स्थानाभाव के कारण जैसा विस्तार से चाहता था वैसा नहीं लिख सका तथापि जिज्ञासुओं को इसमें बहुत कुछ जानने को मिलेगा और यह तुलनात्मक अध्ययन दुराग्रह और संकीर्ण दृष्टि के निरसन में सहायक होगा । उपसंहार
श्रमण भगवान महावीर एक विराट व्यक्तित्व के धनी महापुरुष थे 1 वे महान् क्रान्तिकारी थे। उनके जीवन में सत्य, शील, सौन्दर्य और शक्ति का ऐसा अद्भुत समन्वय था जो विश्व के अन्य महापुरुषों में एक साथ देखा नहीं जा सकता। उनकी दृष्टि अत्यधिक पैनी थी। समाज में पनपती हुई आर्थिक विषमता, विचारों की विविधता और कामजन्य वासना के काले कजराले दुर्दमनीय नागों को उन्होंने अहिंसा, सत्य, संयम और तप के गारुड़ी संस्पर्श से कीलकर समता, सद्भावना व स्नेह की सरस सरिता प्रवाहित की । अज्ञान अन्धकार में भटकती हुई मानव प्रज्ञा को
१ जातक (चतुर्थ खण्ड ) ४९७, मातंग जातक, पृ० ५८३-६०७
२
जातक (चतुर्थ खण्ड) ४६८; चित्तसम्भूत जातक, पृ० ५६८-६००
३ हरिथपाल जातक ५०६
४ शान्तिपर्व, अध्याय १७५, २७७
महाजन जातक ५३६ तथा सोनक जातक सं० ५२६
५.
६ महाभारत शान्तिपर्व, अ० १७८ एवं २७६