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________________ तुलनात्मक अध्ययन ६३३ बौद्ध साहित्य में सम्पूर्ण आचारधर्म के अर्थ में 'विनय' शब्द का प्रयोग हआ है। विनय-पिटक में इसी बात का निरूपण किया गया है। - जैन परम्परा में 'अरिहन्त' सिद्ध 'साधु' और केवली-प्रज्ञप्त धर्म को 'शरण' माना है। तो बौद्ध परम्परा में बुद्ध, संघ और धर्म को 'शरण' कहा गया है। जैन परम्परा में चार शरण हैं और बौद्ध परम्परा में तीन शरण हैं। जैन परम्परा में तीर्थकर, चक्रवर्ती, इन्द्र आदि पुरुष ही होते हैं। मल्लि भगवती, स्त्रीलिंग में तीर्थकर हुई थीं, पर उन्हें दस आश्चर्यों में से एक आश्चर्य माना गया है। अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध ने भी कहा कि 'भिक्ष यह तनिक भी सम्भावना नहीं है कि स्त्री अर्हत, चक्रवर्ती व शुक्र हो। . जैन आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर यह वर्णन है कि भरत आदि एक ही क्षेत्र में, एक समय में एक साथ दो तीर्थकर नहीं होते, तथागत बुद्ध ने भी अंगुत्तरनिकाय में इस बात को स्पष्ट करते हए लिखा कि इसमें किञ्चित् भी तथ्य नहीं है कि एक ही समय में दो सम्यक् अहंत पैदा हों। शब्द साम्य की तरह उक्ति साम्य भी दोनों परम्पराओं में मिलता है। साथ ही कुछ कथाएँ भी दोनों परम्पराओं में एक सदश मिलती हैं। यहाँ तक कि वैदिक और विदेशी साहित्य में भी उपलब्ध होती हैं। उदाहरणार्थ-ज्ञाताधर्मकथा की सातवीं चावल के पांच दाने वाली कथा कुछ रूपान्तर के साथ बौद्धों के सर्वास्तिवाद के विनयवस्तु तथा बाइबिल' में भी प्राप्त होती है। इसी प्रकार जिनपाल और जिनरक्षित' की कहानी बालहस्स जातक" व दिव्यावदान में नामों के हेरफेर के साथ १ अरहन्ते सरणं पवज्जामि, सिद्ध सरर्ण पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवली पश्नत्त' धम्म सरणं पवज्जामि । -आवश्यकसूत्र २ बुद्ध सरणं गच्छामि, संघ सरणं गच्छामि, धम्म सरणं गच्छामि -अंगुत्तरनिकाय ३ स्थानांग, ठाणा १० ४ अंगुत्तरनिकाय ५ सेन्ट मेंथ्यू की सुवार्ता २५; सेन्ट ल्यूक की सुवार्ता १९ ६ ज्ञाताधर्मकथा ८ ७ बालहस्स जातक, पृ० १८६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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