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तुलनात्मक अध्ययन ६२६
जैन दृष्टि से साधना की पाँच भूमिकाएं हैं। व्रतों से पहले सम्यक्दर्शन को स्थान दिया गया है। उसके पश्चात् विरति है । मज्झिमनिकाय के सम्मादिट्टि सुत्तन्त में दस कुशल धर्मों का उल्लेख ' है । उनका समावेश पांच महाव्रतों में इस प्रकार किया जा सकता है
महाव्रत १ अहिंसा
२ सत्य
३ अचौर्य ४ ब्रह्मचर्यं
५ अपरिग्रह
कुशल धर्म (१) प्राणातिपात, (६) व्यापाद से विरति,
(४) मृषावाद, (५) पिशुन वचन
(६) पुरुष वचन, (७) संप्रलाप से विरति
(२) अदत्तादान से विरति
(३) काम में मिथ्याचार से विरति (८) अभिध्या से विरति
भावना -- प्रश्नव्याकरणसूत्र में पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं का उल्लेख है । अन्यत्र अनित्य, अशरण, संसार आदि द्वादश भावनाओं का भी उल्लेख है ।" तस्वार्थसूत्र आदि में मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ भावना का उल्लेख है। तो मज्झिमनिकाय में सम्यग्दर्शन के साथ ही भावना का भी वर्णन आया है। मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा की भावना करने वाला आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त कर सकता है।
स्थानाङ्ग, आवश्यक व तत्वार्थ सूत्र आदि में इस बात का
१ मज्झिमनिकाय १११६
२
प्रश्नव्याकरण संवरद्वार
३
(क) तत्त्वार्थ सूत्र २७, (ख) बारस अणुवेक्खा : आ० कुन्दकुन्द
४ मैत्री प्रमोद कारुण्य माध्यस्थानि च सत्त्वगुणाधिकक्लिश्यमानाऽविनयेषु ।
५ मज्झिमनिकाय १२४/१०
६ स्थानांग १८२; समवायांग ३
७
माया सल्ले, नियाण सल्ले मिच्छादंसण सल्ले । तत्वार्थसूत्र ७ १८
सासूत्र ७११