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________________ ६२७ तुलनात्मक अध्ययन गोशालक ने भी भगवान महावीर को 'आउसोकासवा' कहकर सम्बोधित किया है | अर्हत और बुद्ध - वर्तमान में जैन परम्परा में 'अर्हत' शब्द और बौद्ध परम्परा में 'बुद्ध' शब्द रूढ़ हुआ है। जैनागमों में 'बुद्ध' शब्द का प्रयोग अनेक स्थलों पर हुआ है। जैसे- सूत्रकृतांगर, राजप्रश्नीय, स्थानांगर, समवायांग, आदि में बौद्ध परम्परा में पूज्य व्यक्तियों के लिए 'अर्हत्' शब्द व्यवहृत हुआ है । यत्र-तत्र तथागत बुद्ध को 'अर्हत् सम्यक् सम्बुद्ध' कहा गया है। तथागत बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् ५०० भिक्षुओं की एक विराट् सभा होती है। वहीं आनन्द के अतिरिक्त ४६ भिक्षुओं को 'अर्हत्' कहा गया है। कार्यारम्भ होने के पश्चात् आनंद को भी 'अहं' लिखा गया है । शताधिक बार 'अर्हत्' शब्द का प्रयोग हुआ है। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में गृहस्थ उपासक के लिए श्रावक शब्द व्यवहृत हुआ है। जैन परम्परा में गृहस्थ के लिए 'श्रावक' शब्द आया है" तो बौद्ध परम्परा में भिक्षु और गृहस्थ दोनों के लिए 'श्रावक' शब्द का प्रयोग मिलता है। इसी प्रकार उपासक या श्रमणोपासक शब्द भी दोनों ही परम्पराओं में प्राप्त है। गृहस्थ के लिए 'आगार' शब्द का भी प्रयोग हुआ है। जैन साहित्य में 'आगाराओ अणगारिय पव्वइत्तए' शब्द आया है" तो बौद्ध साहित्य में भी 'अगारम्मा अनगारिअं १ आउसो कासवा २ (क) जेय बुद्धा अतिकम्ता जेये बुद्धा अणागया । (ख) संखाई धम्मं य वियागरंति बुद्धा हुते अश्तकरा भवन्ति । ३ तित्थगराणं सयं सम्बुद्धाणं । ४ तिविहा बुद्धा पाणबुद्धा, दंसणबुद्धा, चरितबुद्धा । ५ समणेणं मगवया महावीरेण आइगरेणं तित्ययरेणं सयं ---भगवती, शतक १५ सूत्रांग २०१०३६ ६ दीघनिकाय सामञ्ञफलसुत्त ११५ ७ विनयपिटक पंचशतिकास्कन्धक उपासकदशांग, भगवती ६ अंगुत्तरनिकाय एककनिपात १४ १० भगवती --सूत्रकृतांग १०१४१६ - राजप्रश्नीय ५ - स्थानांग, ठा० ३ संबुद्धेणं । - समवायांग सूत्र २२
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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