SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 653
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा श्रीमद्भागवत, श्रीमद्भगवद्गीता', मनुस्मृति'. आदि के साथ की जा सकती है। कहीं पर शब्दों में साम्य है तो कहीं पर अर्थ में साम्य है। (ग) जो सहइ । गामकंटए अक्कोसपहारतज्जणाओ य। भयभेरवसहसंपहासे, समासुहदुक्खसहे य जे स भिक्खू ॥ -शर्व०१०११ तुलना करें- मिक्खुनो विजिगुच्छतो, भजतो रित्तमासनं । रुक्खमूलं सुसानं वा, पचतानं गुहासु वा ।। उच्चावचेसु सयनेसु, कीवन्तो तत्थ भरेवा । ये हि भिक्खु न वे धेय्य, निग्घोसे सयनासने ॥ ---सुसनिपात ५४०४-५ (घ) दशवकालिक १०१७ तुलना करेंसुत्तनिपात ५२८ कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जेत्ता, काले कालं समायरे ।। -दशव० ५।२४ तुलना करेंकाले निक्खमणा साधु, नाकाले साधु निक्खमो। अकालेनहि निक्खम्म, एककपि बहुजनो॥ -कौशिक जातक २२६ ६ घिरत्यु ते जसोकामी, जो तं जीवियकारणा। वन्तं इच्छसि आवेळ, से यं ते मरणं भवे ।। -वै० २७ तुलना करें धिरत्थु तं विसं वातं यमहं जीवितकारणा। वन्तं पच्चावमिस्सामि, मतम्मे जीविता वरं ।। -विसवन्त जातक ६९ ७ जयं चरे जयं चिठे, जयमासे जयं सए। . जयं भुजस्तो भासतो, पावं कम्म नबंधई। -वश०४८ तुलना करेंयतं चरे यतं तिढे यतं अच्छे यतं सये। यतं सम्मिन्नये भिक्खू यतमेनं पसारए। -इतिवृत्तक १२ ८ (क) उद्देसियं कीयगड, नियागमभिहनाणि य । राइभत्ते सिणाणे य, गंधमल्ले य बीयणे ॥ सग्निही मिहिमत्ते य रायपिंडे किमिच्छए। संवाहणा दंतपहोयणा य, संपुच्छणा देहपलोयणा य॥ -वरा० ३।२-३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy