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________________ तुलनात्मक अध्ययन ६२३ दशवकालिक' की अनेक गाथाओं की तुलना धम्मपद, संयुत्तनिकाय, सत्तनिपात कोशिक जातक', विसवन्त जातक', इतिवृत्तक', १ धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥ -शव०११ तुलना करें२ (क) यम्हि सच्चं च धम्मो च, अहिंसा संयमो दमो। स वे वंतमलो धीरो, सो थेरोति पवुच्चति ॥ -धम्मपद १६६ (ख) जहा दुमस्स पुप्फेसु, ममरो आवियह रसं । य पुष्पं किलामेइ, सो य पीणेइ अप्पयं ।। -श०१२ तुलना करें यथापि भमरो पुप्फं, वरुण-गंध अहेठयं । पलेति रसमादाय, एवं गामे मुनी चरे ।। -धम्मपद ४१६ (ग) उवसमेण हणे कोहं, -वश०३८ तुलना करेंअक्कोधेन जिने को, -धम्मपद १७-३ (घ) दशवकालिक-२१ से तुलना करें-धम्मपद १२१८ ३ कहं नु कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए । पए पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ। -वश० २१ तुलना करेंकतिहं चरेय्य सामञ्ज, वित्तं चेन निवारए। पदे पदे विसीदेय्य, सङ्कप्पानं वसानुगो॥ -संयुत्तनिकाय १३१।१७ ४ (क) तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। होही अट्ठो सुए परे वा, तं न निहे न निहावए जे स मिक्ख ।। -शव०१०१० तुलना करें--- अग्नानमयो पानानं, खादनीयामथो पि वत्थानं । लद्धा न सनिधि कपिरा, न च परित्तसे तानि अलममानो। -सुत्तनिपात ५२।१० (ख) न य वुग्गहियं कहं कहेज्जा, न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते । ___ संजमधुवजोगजुत्ते, उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू ॥ -शर्व०१०१० । न च कस्थिता सिया भिक्खू, न च वाचं पयुतं भासेय्य । पागन्मियं न सिक्खेय्य, कथं विग्गाहिक न कथयेय्य ॥ -सुत्तनिपात ५२०१६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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