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________________ ६२२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा उत्तराध्ययन के २५वें अध्ययन में ब्राह्मणों के लक्षणों का निरूपण किया गया है और प्रत्येक गाथा के अंत में 'तं वयं बूम महाणं' पद है। उसकी तुलना बौद्ध ग्रन्थ धम्मपद के ब्राह्मणवर्ग ३६वें तथा सुत्तनिपात के वासेट्ठसुत्त ३५ के २४५वें अध्याय से की जा सकती है। धम्मपद के ब्राह्मणवर्ग की गाथा के अन्त में 'तमहं टिम ब्राह्मणं' पद आया है। सुत्तनिपात में भी इस शब्द का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार महाभारत के शान्तिपर्व अध्याय २४५ में ३६ श्लोक हैं, उनमें ७ श्लोकों के अन्तिम चरण में 'तं देवा ब्राह्मणं विदुः' ऐसा पद है। इस प्रकार तीनों परम्परा के माननीय ग्रन्थों में ब्राह्मण के स्वरूप की मीमांसा की गई है। उस मीमांसा में कुछ शब्दों के परिवर्तन के साथ उन्हीं रूपक और उपमाओं के प्रयोग द्वारा विषय को स्पष्ट किया है। शान्तिपर्व १७॥१०,११,१२, शान्तिपर्व २७७१०,११,१२; उत्त० १४१४६-- शान्तिपर्व १७८।। ५ पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पस्सुमिस्सह । पडिपुग्णं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे।। --उत्त० ४४ तुलना कीजिए-- यत् पृषिव्या ब्रीहियवं, हिरण्यं पशवः स्त्रियः । नालमेकस्य तत् सर्वमिति पश्यन्न मुह्यति ।। -उद्योगपर्व ३४ उत्त०१३।२३-उद्योगपर्व ४०.१५, १८ उत्त० १३१२४-उद्योगपर्व ४०१७; उत्त. १३३२५--उद्योगपर्व ४०११७उत्त० २।२६-उद्योग पर्व ४३२३५॥ ६ उत्त०६।४६-विष्णुपुराण ४। ११।। ७ उत्त० २०३६,३७-गीता ६५,६; उत्त० २३१-पीता. ४११३; उत्त० ३२११००-गीता० २१६४ । ८ जहा य किपागफला मणोरमा, रसेण वण्णेण य मुज्जमाणा। ते खुडुए जीविए पच्चमाणा, एओषमा कामगुणा विवागे ॥ -उत्स०३२।२० तुलना कीजिएत्रयी धर्ममधर्मार्थ किंपाकफलसंनिमम् । नास्ति तात! सुखं किञ्चिदत्र दुःखशताकुले ।। -शांकरभाष्य, बचेता० उप०, पृ०२३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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