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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
संकलन किया गया। बारहवें दृष्टिवाद के एक मात्र ज्ञाता भद्रबाहु स्वामी उस समय नेपाल में महाप्राण-ध्यान की साधना कर रहे थे। संघ की प्रार्थना से उन्होंने बारहवें अंग की वाचना देने की स्वीकृति दी। मुनि स्थूलभद्र ने दस पूर्व तक अर्थसहित वाचना ग्रहण की । ग्यारहवें पूर्व की वाचना चल रही थी, तभी स्थूलभद्र मुनि ने सिंह का रूप बनाकर बहिनों को चमत्कार दिखलाया' जिसके कारण भद्रबाहु ने आगे वाचना देना बन्द कर दिया। तत्पश्चात् संघ एवं स्थूलभद्र के अत्यधिक अनुनय-विनय करने पर भद्रबाहु ने मूल रूप से अन्तिम चार पूर्वो की वाचना दी, अर्थ की दृष्टि से नहीं। शाब्दिक दृष्टि से स्थूलभद्र चौदहपूर्वी हुए, किन्तु अर्थ की दृष्टि से दसपूर्वी ही रहे।
द्वितीय वाचना-आगम संकलन का द्वितीय प्रयास ईस्वी पूर्व द्वितीय शताब्दी के मध्य में हुआ। सम्राट् खारवेल जैनधर्म के परम उपासक थे। उनके सुप्रसिद्ध 'हाथी गुफा' अभिलेख से यह सिद्ध हो चुका है कि उन्होंने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन मुनियों का एक संघ बुलाया और मौर्यकाल में जो अंग विस्मृत हो गये थे, उनका पुनः उद्धार कराया था। 'हिमवंत थेरावली' नामक संस्कृत प्राकृत मिश्रित पट्टावली में भी स्पष्ट उल्लेख है कि महाराजा खारवेल ने प्रवचन का उद्धार कराया था।
तृतीय वाचना-आगमों को संकलित करने का तीसरा प्रयास वीर निर्वाण ८२७ से ८४० के मध्य में हुआ। . उस समय द्वादशवर्षीय भयंकर दुष्काल से श्रमणों को भिक्षा मिलना कठिनतर हो गया था। श्रमणसंघ की स्थिति अत्यन्त गम्भीर हो गई। विशुद्ध आहार की अन्वेषणा-गवेषणा के लिए युवक मुनि दूर-दूर देशों की
ओर चल पड़े। अनेक वृद्ध एवं बहुश्रुत मुनि आहार के अभाव से आयु पूर्ण कर गये । क्षुधापरीषह से संत्रस्त मुनि अध्ययन, अध्यापन, धारण और
१ तेण चितियं मगणीणं इड्ढि दरिसेमि त्ति सीहरूवं विउब्बइ।
-आवश्यक वृत्ति, पृ० ६६८ २ (क) तित्थोगालीय पइण्णय ७४२ ।
(ख) आवश्यक चूर्णि, पृ० १८७ ।
(ग) परिशिष्ट पर्व, सर्ग ६, आचार्य हेमचन्द्र । ३ जर्नल आफ दी बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, भा० १३, पृ० ३३६ । ४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, पृ० ८२ ।